बहुत समय पहले की बात है एक बड़ा ही सज्जन ब्राह्मण हुआ करता था वो अपनी पत्नी के साथ ख़ुशी ख़ुशी जीवन व्यतीत कर रहा था| भगवान् का दिया सब कुछ था उनके पास बस एक ही चीज़ की कमी थी की उनके कोई पुत्र नहीं था| ब्राह्मणी बड़ी ही सच्चे स्वभाव की थी और माता महामाया में उसकी गहरी आस्था थी उसने पुत्र रत्न प्राप्ति के उद्देश्य से माता महामाया की अराधना प्रारम्भ कर दी| ब्राह्मणी ने बड़ा घोर तप किया और उसकी भक्ति से प्रसन्न हो कर देवी महामाया ने उसे दर्शन दिए और पूछा की पुत्री तुम इतना घोर तप किस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कर रही हो|
अपने इस्ट देवी को सम्मुख देख कर ब्राह्मणी की प्रसन्नता की कोई सीमा न रही उसने पहले तो देवी को शाष्टांग प्रणाम किया और अपने तपस्या करने का कारण बताया की मैं पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से आपकी आराधना कर रही थी| अगर आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे एक यशश्वी पुत्र की माता बनने का वरदान दें|
इसपर माता महामाया ने ब्राह्मणी से कहा की तुम कैसे पुत्र की माता बनना चाहोगी एक पुत्र तो बड़ा ही दीर्घायु होगा जो 10000 वर्ष जियेगा लेकिन बड़ा ही मूर्ख होगा और दूसरा बड़ा ही विद्वान् होगा परन्तु केवल 15 वर्ष ही जियेगा| अब तुम ही निर्धारित करी तुम किसकी माता बनना चाहोगी इसपर ब्राह्मणी ने कहा माता आपने तो मुझे धर्म संकट में डाल दिया एक जाने माने ज्ञानी पंडित का पुत्र अगर महा मूर्ख होगा तो बड़ी जग हंसाई होगी अतः आप मुझे अल्पायु परन्तु विद्वान् पुत्र की माता बनने का वर दें|
इसपर देवी महामाया में मुस्कुराते हुए तथास्तु कहा और ठीक नौ महीने के बाद ब्राह्मणी के कोख से एक बड़े ही सुन्दर बालक का जन्म हुआ| जैसे जैसे बालक बड़ा होने लगा वैसे वैसे उसकी विद्वता के चर्चे चारों ओर होने लगे 12 वर्ष का होने पर ब्राह्मणी ने सोचा की 15 वर्ष में इसकी मृत्यु हो जायेगी तो क्यूँ न इसका विवाह कर दिया जाए|
ऐसा सोच कर ब्राह्मणी ने उसका विवाह एक बड़ी ही सुन्दर और सुशील कन्या से करा दिया| निश्चित समय पर यमराज ने सांप का वेश धारण कर ब्राह्मणी के पुत्र को डस लिया और तत्काल ही उसकी मृत्यु हो गयी| किस्मत से जब सांप ने उसे डसा तब उसकी पत्नी वही मौजूद थी उसने फ़ौरन ही सांप को पकड़ कर कमंडल में बंद कर दिया और माता महामाया की तपस्या करनी प्रारम्भ कर दी| सांप के रूप में यमराज के कमंडल में कैद होने की वजह से तीनो लोकों में त्राहि त्राहि हो रही थी हार कर देवों ने माता महामाया के समक्ष जाकर यमराज को छुड़ाने की प्रार्थना की|
माता महामाया ने उस कन्या को दर्शन दिया और उसके पति को जीवित कर दिया साथ ही उससे यमराज को मुक्त करने का आग्रह किया| जैसे ही उसने यमराज को मुक्त किया उसके सतित्व से प्रभावित होकर यमराज ने उसके पति को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया तभी से शादी के समय किसी भी वर के नाम से पहले चिरंजीवी लगाने का चलन शुरू हो गया|