हम भारतीय होते हुए भी अपनी सभ्यता और संस्कृति तो भूलते जा ही रहे हैं साथ ही हम अपने त्योहारों की अपेक्षा उन अंग्रेजों के त्योहारों को बड़े धूम धाम से मनाते हैं जिन्होंने दशकों तक हमें गुलाम बनाये रखा|
अंग्रेजों के शाशन काल में ऐशो आराम एवं मनोरंजन वाले जगहों पर एक तख्ती लटकी होती थी जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा होता था “Dogs and Indians are not allowed” जिसका अर्थ होता है की यहाँ कुत्ते और भारतीयों का आना मना है| जबकि ये सारी जगहें हमारी अपनी मातृभूमि पर बने हुए थे हम अपनी ही मातृभूमि पर बने जगहों पर नहीं जाया सकते थे| कैसे भूल सकते हैं हम उस अपमान और पीड़ा को जो हमारे पूर्वजों ने दशकों तक सही थी| हम 1 जनवरी को नव वर्ष मनाते हैं पर ये भूल जाते हैं की हमारी सभ्यता और संस्कृति के मुताबिक नए वर्ष की शुरुआत 1 जनवरी को नहीं होती|
आज कल के बच्चों को तो अगर माघ, पौष, फाल्गुन इत्यादि महीनों के नाम बोले जाएँ तो वो आपकी और अचरज भरी नज़रों से देखेंगे जैसे आप किसी और ग्रह के प्राणी हो| आये जानते है कैसे एक मासूम बच्चे के मासूम सवालों ने पिता की आँखें खोल दी|
बेटा :- पापा नया साल 2 बार क्यों आता है?
पिता :- नहीं बेटा..नया साल तो एक बार ही आता है साल में 1 जनवरी को…
बेटा :- नही पापा..एक भैया घर पर आकर एक झंडा दे गए हैं केसरिया रंग का और बोले इसको नए साल के दिन सुबह अपने घर की छत पर लगाना।
पिता :- ओह हो बेटा वो संघ शाखा और “शिव सेना” वाले होंगे वो ये “हिन्दु वाला” नया साल मनाते है|
बेटा आश्चर्य से पिता की ऒर देखकर जो कहता है वो शायद हमारी आँखे खोल दे?
“पापा इसका मतलब क्या हम हिन्दु नहीं है”?
क्या हम अपनी दिवाली, दशहरा, होली, राखी, तीज, गणगौर नहीं मनाते?
तो फिर हम अपना नया साल सिर्फ अंग्रेजों वाला ही क्यों मनाये? क्युँ नही हम पहले अपना “हिन्दु नव वर्ष” मनाये.??
पिता :- कुछ सोचकर..बेटा तेरी बात तो एकदम सही है| ठीक है जा बेटा लगा दे अपना केसरिया भगवा झंडा घर के ऊपर और तेरी माँ से कह दे की हमारे हिन्दु नव वर्ष पर खीर पुड़ी भी बना ले| भई हम हिन्दुओं का अपना तो यही नया साल है कुछ मीठा भी तो होना ही चाहिये आज से हम अपने नव वर्ष को पूरे उत्साह से मनाएंगे|
विदेशी नववर्ष पे कैसा हर्ष
आओ मनाये भारतीय नववर्ष