क्या आप कभी मैक डॉनल्ड्स गए हैं? पक्का गए होंगे। पर क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि लोग वहां जा कर ऐसे बात करते हैं जैसे ब्रिटेन से कोई अंग्रेज आया हो और बात कर रहा हो। इस झूठे अंदाज़ को ‘फेक एक्सेंट’ कहा जाता है। यह ना सिर्फ सुनने में भद्दा लगता है, बल्कि इस से यह भी साबित होता है कि हम कितने बड़े बेवक़ूफ़ हैं। हो सकता है की आपकी राय इस बारे में अलग हो पर आप इस बात से सहमत होंगे की यह हर उस इंसान की नाकामयाब कोशिश है जो अपने आप को एक ब्रिटेन का अंग्रेज समझता है।
हम धीरे धीरे यह क्यों भूलते जा रहे हैं कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। अगर देखा जाए तो ऐसे बहुत सारे वाक्य है जिनकी वजह से हम सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि हमें अपनी राष्ट्रभाषा बोलने में शर्म का एहसास क्यों होता है? हम अपनी मातृभाषा छोड़ कर उन ब्रिटेन वासियों की तरह बोलने की कोशिश करते हैं जिन्होंने भारत पर सालों तक राज किया। अंग्रेजों ने भारतवासियों पर कितने असभ्य तरीके से राज किया और कितने अत्याचार किए, यह बात किसी से भी छुपी नहीं है|
उत्तरी भारत में अंग्रेजी बोलने का यह चलन बहुत ज्यादा है। अब दक्षिण भारत के लोगों की बात करें तो उन्हें या तो उनकी क्षेत्रीय भाषा आती है या फिर अंग्रेजी। ना जाने क्यों भारतवासी अपनी मातृभाषा बोलने में शर्म महसूस करते हैं जबकि ब्रिटेन की भाषा, अंग्रेजी, बोलने में उन्हें गर्व महसूस होता है।
हम यह नहीं कहते कि अंग्रेजी भाषा बुरी है। अंग्रेजी बोलना या सीखना कोई बुरी बात नही है। क्योंकि कई बार ऐसी परिस्थिति भी आ जाती है जहाँ हमारा अंग्रेजी बोलना अनिवार्य हो जाता है। परन्तु अंग्रेजी ऐसी बोलिये जैसे कि एक आम हिंदुस्तान का नागरिक बोलता है। फेक एक्सेंट से आपको कोई ‘एक्स्ट्रा मार्क्स’ नहीं मिलने वाले और ना ही सामने वाला आपको कुछ ज़्यादा इज़्ज़त देगा। यह एक सत्य है जिस से सब वाकिफ भी हैं कि अगर हम अपने स्वाभाव से कुछ अलग करें तो वह हमें शोभा नही देता। जैसे हिंदुस्तानियों के स्वाभाव में हिंदी बोलना है। अगर हम हिंदी में बात करते हैं तो यह हमारे स्वाभाव के अनुसार हमें शोभा देता है। परन्तु हमारे स्वाभाव में अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल नही है और कई बार हम अंग्रेजी बोलते समय ब्रिटिश स्वर का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं जो कि हमारे स्वाभाव में ही नही है। इसलिए हमारे बोलने का तरीका थोड़ा अलग हो जाता है जो कि हमारे स्वाभाव के अनुसार हमें शोभा नही देता। इसे ही ‘फेक एक्सेंट’ कहा जाता है।
बहुत सी परिस्थितियों में अंग्रेजी बोलने की आवश्यकता पड़ती है। जैसे कि अगर कोई विदेशी हमसे मदद मांगता है या हमें कभी किसी विदेशी की सहायता की आवश्यकता हो तो अंग्रेजी भाषा के माध्यम से ही हम एक दूसरे की बात समझ पाएंगे। अगर हमे आज के समय में आगे बढ़ना है तो अंग्रेजी भाषा को बोलना तथा समझना आना चाहिए। इसलिए अंग्रेजी भाषा को सीखना भी बेहद जरूरी है। परन्तु अंग्रेजी भाषा को सीखने का मतलब यह नही है कि हम अपनी मातृ भाषा को भूल जाएं। हमारे लिए समझने की बात केवल यही है कि हमें ‘फेक एक्सेंट’ को छोड़ कर अपने स्वाभाव या अपनी प्रकृति के हिसाब से अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
हम हिंदुस्तानी है तथा हमारी पहचान हमारी मातृ भाषा हिंदी से ही है। हमें दूसरों की नजरों में ऊंचा उठाने के लिए किसी दूसरी भाषा की आवश्यकता नही है। अगर हम अंग्रेजी को ब्रिटिश स्वर के स्थान पर हिंदुस्तानी स्वर यानि कि अपने स्वाभाव के अनुसार बोले तो हमारी बात सुनने वाले व्यक्ति को भी हमारा अंग्रेजी में बात करना अजीब नही लगेगा और हम उस व्यक्ति के मजाक का केंद्र बनने से भी बच जाएंगे।
अंग्रेजी के ‘फेक एक्सेंट’ के अलावा हम आप तक अपनी यह बात भी पहुंचाना चाहते हैं कि भारतवासियों को अपनी मातृभाषा के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए। इसी विषय में माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने सभी सरकारी कार्यों के लिए हिंदी में आवेदन लिख कर देने और स्वीकार करने का ऐतिहासिक कदम उठाया है। आज कल की युवा पीढ़ी अपने पिता को डैड और माता को मॉम कहना पसंद करती है। यहाँ तक की नमस्कार की जगह हाय डूड और वाट्स अप बडी ने ले ली है। आज भी तेईस बोलने पर लोग आपकी ओर अचरज से देखने लगते हैं और मतलब पूछते हैं। परन्तु क्या आपको पता है कि अपने धर्म ग्रंथों की बातों को अंधविश्वास मान कर हमने सिरे से नकार दिया है। उन्ही धर्म ग्रंथों की कई बातें है जिन्हें विज्ञान ने भी सत्य माना है परन्तु पता नहीं क्यों हम अपनी सभ्यता और मातृभाषा की जगह विदेशी सभ्यता और अंग्रेजी भाषा को सर्वोपरी मानने लग गए हैं। आइये मिल कर प्रण करें की हम मोदी जी की इस कोशिश को सफल बनाने में अपना योगदान दें और साथ ही साथ ही अपनी आने वाली पीढ़ियों को भारत की अनमोल सभ्यता विरासत के रूप में दें।