हमारा धर्म हमे सच्चाई के मार्ग पर चलना सिखाता है। अगर हम किसी को पीड़ा देते हैं तो उसे धर्म में पाप माना जाता है तथा अगर हम कोई अच्छा कार्य करें तो उसे पूण्य माना जाता है। यह नियम केवल मनुष्य के लिए नही है बल्कि देवताओं तथा भगवान के लिए भी है। अगर ये भी कोई गलती या पाप करें तो इन्हें भी अपनी गलती की सजा भोगनी पड़ती है।
ऐसी ही एक घटना है जो बताती है कि जनक पुत्री देवी सीता ने जब किसी को तड़पाया तो उन्हें भी सजा भोगनी पड़ी थी। देवी सीता ने अपने बचपन में किसी गर्भवती स्त्री को तड़पाया था, जिस वजह से उन्हें श्राप मिला था।
एक दिन देवी सीता अपने महल के बगीचे में खेल रही थी। उसी बगीचे में एक नर व मादा तोते का जोड़ा था। वो दोनों आपस में कुछ बात कर रहे थे। उनकी बातें देवी सीता को सुनाई दे रही थी। वह जोड़ा बात कर रहा था कि भूमंडल में एक बड़ा ही प्रतापी राजा होगा। जिसे सब राम के नाम से जानेंगें। उस राजा की सीता नाम की बहुत सुन्दर पत्नी होगी। देवी सीता को अपने विवाह की बातें सुनकर अच्छा लग रहा था। यह सब सुनकर वह बहुत उत्सुक हो गयी तथा उनसे अपने विवाह के बारे में जानने के लिए उन्होंने उस जोड़े को पकड़वा लिया।
देवी सीता ने उस जोड़े से पूछा कि उन्हें ये बातें कहाँ से पता चली? तोते ने बताया कि उन्होंने ये बात महर्षि वाल्मीकि के मुख से उस समय सुनी जब वह अपने शिष्यों को पढ़ा रहे थे।
देवी सीता ने तोते से कहा कि तुम जिसके विवाह की बात कर रहे हो वह मैं ही हूँ। तुम्हारी बातें मुझे रोमांचित कर रही हैं। अब मैं तुम्हे तब छोडूंगी जब मेरा विवाह श्री राम से हो जाएगा।
तोते ने देवी सीता के आगे याचना करते हुए कहा कि हम पक्षी हैं। हम एक जगह कैद होकर नही रह सकते। हमें घर में सुख नही मिलता। हमारा काम ही आसमान में विचरण करना है। यह सुनकर देवी सीता ने नर तोते को आजाद कर दिया। परन्तु उसकी पत्नी को छोड़ने से मना कर दिया और कहा कि मैं तुम्हारी पत्नी को उस समय ही छोडूंगी जब मुझे राम प्राप्त हो जायेंगे।
नर तोते ने गिड़गिड़ाते हुए कहा कि हे सीते, मेरी पत्नी गर्भ से है। मैं इसका वियोग सह नही पाऊंगा। परन्तु देवी सीता पर तोते की बातों का कुछ असर न हुआ। उन्होंने मादा तोते को नही छोड़ा। यह देखकर मादा तोते को बहुत क्रोध आया। क्रोधित होकर उसने देवी सीता को श्राप दिया कि जैसे तू मेरी गर्भावस्था में मेरे पति से मुझे दूर कर रही है, उसी प्रकार तुझे भी अपनी गर्भावस्था में अपने राम का वियोग सहना पड़ेगा।
श्राप देने के बाद मादा तोते ने अपने प्राण त्याग दिए। कुछ समय बाद उसके वियोग में नर तोते ने भी अपने प्राण त्याग दिए। सालों बाद इस श्राप के कारण माता सीता को अपनी गर्भावस्था में श्री राम से दूर रहना पड़ा।