एक बार की बात है जब श्री राम, लक्ष्मण और सीता अपने वनवास के दौरान चित्रकूट पहुंचे तो वहां का मनोहर दृश्य देख कर इतने प्रसन्न हुए की वही रहने का निश्चय कर लिया| चित्रकूट के वन में एक उत्तम स्थान देख कर लक्ष्मण ने एक सुन्दर सी कुटिया का निर्माण कर दिया ताकि धुप बारिश और ठंढ से बचा जा सके| साथ ही साथ जंगली जानवरों का भय भी ना रहे| देवी सीता और श्री राम कुटिया देखकर बड़े प्रसन्न हुए और लक्ष्मण की सराहना की|
इसी क्रम में एक दिन जब श्री राम अपनी कुटिया के बाहर बैठे थे तभी दैत्यराज रावण की बहन शूर्पनखा वहां से गुजर रही थी| श्री राम पर नज़र पड़ते ही वो ठिठक कर रुक गयी श्री राम की अनुपम छवि देख कर वो उनपर मोहित हो गयी और मन ही मन उनसे विवाह करने का निश्चय कर लिया|
शूर्पनखा ने सुन्दर स्त्री का रूप धरा और श्री राम के समीप पहुँच कर उन्हें रिझाने की कोशिश करने लगी| शूर्पनखा ने श्री राम से कहा की सारे संसार में मैंने आपसे सुन्दर पुरुष नहीं देखा है और मैं भी अद्वितीय सुंदरी हूँ मुझे पूरे ब्रम्हाण्ड में अपने योग्य आज तक कोई वर नहीं मिला| परन्तु आपको देखकर लगता है की मेरी खोज समाप्त हो गयी है अतः आप मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें| इसपर श्री राम ने कहा देवी मैं आपसे विवाह नहीं कर सकता आप मेरे छोटे भाई के पास जाएँ वो मुझसे भी ज्यादा रूपवान है|
ये सुनकर शूर्पनखा लक्ष्मण के पास गयी और उनसे विवाह का आग्रह किया परन्तु लक्ष्मण ने कहा देवी मैं तो प्रभु राम का सेवक हूँ और मुझसे विवाह कर के आपको सदा सेविका के रूप में रहना होगा| अगर आप सुखमय विवाहित जीवन व्यतीत करना चाहती है तो प्रभु श्री राम से ही विवाह का आग्रह करें मैं तो सेवक मात्र हूँ| शूर्पनखा एक बार फिर राम के पास पहुंची तब श्री राम ने कहा की देवी तुम्हारा वरन वही करेगा जो नितांत ही निर्लज्ज हो|
इतना सुनते ही शूर्पनखा के क्रोध की कोई सीमा न रही और उसने अपना वास्तविक रूप धारण कर लिया ये देखकर देवी सीता भयभीत हो उठी| लक्ष्मण ने जब सीता को डरते हुए देखा तो उन्होंने झट से अपनी तलवार निकल ली और शूर्पनखा की ओर दौड़ पड़े| इस पर शूर्पनखा ने अपने तेज नाखूनों से उनपर प्रहार किया परन्तु लक्ष्मण जो की पहले से ही सतर्क थे वो उसके बार से बच गए और उसके नाक और कान काट दिए| इसपर शूर्पनखा ने विलाप करते हुए लक्ष्मण को धमकी दी की मेरे भाई इसका बदला अवश्य लेंगे और वह से भाग कड़ी हुई|