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भारत में एक से बढ़ कर एक वीर पैदा हुए और कई ऐसे वीर भी थे जिनकी वजह से उनके वंसज आज भी गौरव का अनुभव करते हैं| आज हम बताने जा रहे है एक ऐसे ही वीर राजा के बारे में जिनकी वजह से राजपूत आज भी सर उठा कर कहते है की वो उनके वंसज हैं|
हम बात कर रहे है शिशोदिया राजवंश के राजा महाराणा उदयसिंह और रानी जीवंत बाई के वीर पुत्र महाराणा प्रताप सिंह के बारे में| सन 1540 में कुम्भलगढ़ के राजा महाराणा उदय सिंह के घर 9 मई को एक बालक का जन्म हुआ उस बालक के मुख के प्रताप को देख कर उसका नाम महाराणा प्रताप सिंह रखा गया| बचपन से ही उनमे विलक्षण प्रतिभाएं थी महाराणा प्रताप पढने लिखने में जितने मेधावी थे उतनी की लगन उनमे शस्त्र विद्या और घुड़सवारी सिखने की भी थी|
जैसे जैसे वो बड़े होते गए युद्ध कला में कोई उनके समीप भी नहीं था उनके पराक्रम की चर्चा दूर दूर तक थी| बात सन 1575 की है जब पूरे भारतवर्ष पर मुगलों का कब्ज़ा होता जा रहा था| मुगलों की विशाल सेना के आगे बड़े बड़े राजा भी नहीं टिक पाए जिन्होंने मुगलों की सेना से मुकाबला करने की कोशिश भी की उन्हें मुगलों ने साम, दाम, दंड, भेद अपना कर अपने अधीन कर लिया| कुछ राजा इसे भी थे जो की मौकापरस्त थे उन्होंने मुगलों की बढती ताकत देख कर खुद ही उनके आगे घुटने टेक दिए| मुग़ल शासक बड़े ही अत्याचारी थे वो हिन्दुस्तान की जनता पर तरह तरह के अत्याचार करते थे कई हिन्दुओं को जबरन इस्लाम कुबूल करने को भी मजबूर किया गया था|
महाराणा प्रताप अपनी प्रजा से बड़ा प्रेम करते थे और किसी भी हालत में अपने राज्य को उस समय के मुग़ल शासक अकबर की सल्तनत में मिलाने को राजी नहीं हुए| अकबर ने उन्हें घुटने टेकने को कहा जिसे की उन्होंने सिरे से नकार दिया और कहा की राजपूत सर कटा तो सकता है पर किसी के सामने सर झुका नहीं सकता| अकबर की दासता स्वीकार करने से अच्छा वो युद्ध भूमि में मर जाना पसंद करेंगे अकबर ने उन्हें मनाने के लिए जलाल खान कोरची, मानसिंह, भगवान् दास और टोडरमल नामक चार शांति दूतों को भी भेजा|परन्तु कोई भी उन्हें मना नहीं सका जिसके परिणाम स्वरुप हल्दी घाटी का युद्ध हुआ| महाराणा प्रताप ने अपने 20000 सैनिकों को लेकर मुगलों के सरदार मान सिंह की 80000 सैनिकों की विशाल सेना का सामना किया था| महाराणा प्रताप का एक एक सिपाही सौ के बराबर था और एक दिन चले इस भीषण युद्ध में मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई|
हालाकि इस युद्ध में महाराणा प्रताप की जान झाला मानसिंह ने अपनी जान दे कर बचाई| महाराणा प्रताप ने सभी विद्रोही राजाओं को संगठित कर युद्ध की घोषणा कर दी और धीरे धीरे अपने सारे साम्राज्य पर फिर से आधिपत्य स्थापित कर लिया| उनके डर से अकबर अपनी रानियों को लेकर लाहौर चला गया और वही अपनी राजधानी बना ली| अपने जीतेजी महाराणा प्रताप ने कभी किसी के सामने सर नहीं झुकाया और अकबर को भी आगरा छोड़ कर लाहौर जाने को विवश कर दिया| परन्तु 11 वर्ष बाद ही 19 जनवरी सन 1597 को उनका देहांत हो गया|