यह तो सबको ज्ञात है कि इंद्र के कोप से गोकुल वासियों को बचाने के लिए श्री कृष्ण ने गोवर्धन को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था। परन्तु बहुत कम लोगों को पता होगा कि इस घटना के पीछे हनुमान जी का हाथ था। आइए जानते हैं कि हनुमान जी ने ऐसा क्या किया कि श्री कृष्ण को गोवर्धन पर्वत उठाना पड़ा।
त्रेतायुग में जब विष्णु जी ने श्री राम का अवतार लिया था। तब उन्हें लंका तक पहुँचने के लिए वानर सेना की सहायता से समुद्र पर सेतु का निर्माण करना पड़ा था। उस समय सेतु पुल के लिए बहुत सारे पत्थरों की आवश्यकता थी। इसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए हनुमान जी हिमालय पर गये। वहां पहुँच कर उन्होंने एक बड़ा सा पर्वत उठा लिया और समुद्र की ओर चल पड़े। मार्ग में उन्हें पता चला कि सेतु का निर्माण पूरा हो चूका है।
यह पता चलने पर उन्होंने पर्वत को वहीं जमीन पर रख दिया। यह देखकर पर्वत निराश हो गया और उसने हनुमान जी से कहा कि मैं न तो श्री राम के काम आया और न अपने स्थान पर रह सका। पर्वत को इस तरह निराश देखकर हनुमान जी ने कहा कि द्वापर में भगवान श्री राम फिर से अवतार लेंगे। उस समय वह श्री कृष्ण के रूप में आपको अपनी उंगली पर उठा कर देवता के रूप में प्रतिष्ठित करेंगे।
इसी भविष्यवाणी के कारण श्री कृष्ण ने गोवर्धन को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था और कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि को गोर्वधन रूप में अपनी पूजा किए जाने की बात कही थी। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज महाराज के नाम से जाना जाता है और इन्हें साक्षात श्री कृष्ण का स्वरूप माना गया है।