एक दिन भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ देव के मन में विचार आया की क्यों ना एक बार पृथ्वी लोक का भ्रमण किया जाए| अपने भ्रमण के दौरान जब गरुड़ देव भगवान विष्णु के पाटिल पुत्र मंदिर पहुंचे तो उनकी नज़र वहां के चबूतरे पर बैठे थर थर कांपते हुए एक कबूतर पर पड़ी| उसकी स्थिति देख कर उन्हें आश्चर्य हुआ की प्रभु के मंदिर के प्रांगण में जहाँ किसी भी प्रकार का भय नहीं है और धुप में बैठे होने के बावजूद यह कबूतर कांप क्यूँ रहा है?
उन्होंने उस कबूतर से कांपने का कारण पुछा तो उस कबूतर ने पहले तो उन्हें प्रणाम किया उसके बाद कहा की प्रभु आके आने से कुछ समय पूर्व यमराज यहाँ आये थे| जब उनकी नज़र मुझ पर पड़ी तो मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा की कल सुबह सूर्य के उदय होते ही इस अभागे प्राणी की मृत्यु हो जायेगी|
कल मेरे जीवन का आखिरी दिन है यह जानकार भला कोई कैसे खुद पर नियंत्रण रख सकता है| इसीलिए मैं मृत्यु के भय से डर के मारे कांप रहा हूँ मैं अभी मरना नहीं चाहता कृपा कर मेरी प्राणों की रक्षा करें और मुझे इस मुसीबत से बचाएं| उस कबूतर की कातर विनती सुन कर उन्हें उसके ऊपर दया आ गयी साथ ही उनके मन यह विचार भी आया की क्यों न यमराज को चुनौती दी जाए| उन्होंने कबूतर को अपने विशाल पंजों में दबाया और मंदिर के प्रांगण से दूर एक सुरक्षित गुफा में पहुंचा दिया| मलयगन्ध पर्वत पर स्थित गुफा को सुरक्षित बना कर गरुड़ देव वहां से उड़ चले|
वहां से उन्होंने सीधा यमराज की नगरी यमलोक की ओर उड़ान भरी कबूतर के प्राणों की रक्षा करने की अपनी सफलता के बारे में यमराज को बताने की उत्सुकता उनके मन में थी| वो यमराज को यह बताना चाह रहे थे की उन्होंने कबूतर की प्राणों की रक्षा करके उनकी योजना को विफल कर दिया है| जब यमराज को पता चला की गरुड़ देव स्वयं यमलोक पधारे हैं तो उन्होंने उनका उचित आदर सत्कार करके आसन पर बिठाया और यमलोक आने का उद्देश्य पुछा|
तब गरुड़ देव ने बड़े शान से उन्हें बताया की आज जिस कबूतर की मृत्यु होने वाली थी उन्होंने उसे बचा लिया है| उनकी बात सुन कर यमराज मुस्कुराए और चित्रगुप्त से उस कबूतर के बारे पुछा| चित्रगुप्त महाराज ने अपनी बही में देख कर बताया की भगवान विष्णु के पाटिल पुत्र मंदिर में रहने वाला कबूतर आज के दिन सूर्योदय होते ही मलयगन्ध पर्वत की एक गुफा में विदन्त सर्प का भोजन बनेगा और अभी कुछ समय पहले ही वो घडी पूरी हुई है|
यह सुनते ही गरुड़ देव के आश्चर्य का ठिकाना न रहा और वह सीधा उस गुफा में पहुंचे वहां उन्होंने देखा की सर्प ने उस कबूतर को खा लिया था| यह देख कर उन्होंने बड़ा दुःख हुआ की कबूतर की रक्षा करने के बजाय वो खुद ही उसे मृत्यु के मुंह में पहुंचा आये थे| बैकुंठ लोक पहुँच कर गरुड़ देव दुखी मन से एकांत में बैठे थे तब विष्णु भगवान् ने उनकी व्यथा समझ कर उन्हें समझाया की जन्म के समय ही मृत्यु भी निर्धारित हो जाती है और विधि का विधान कोई नहीं ताल सकता है|