वृन्दावन का मशहूर पागल बाबा का मंदिर

मथुरा से वृन्दावन के रस्ते में दस मंजिला संगमरमर का मंदिर आता है, जिसकी सुंदरता मन को मोह लेती है| इस मंदिर को पागल बाबा का मंदिर कहा जाता है| आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी:-

श्री कृष्ण के चमत्कारों से कौन अवगत नहीं हैं| उनकी सभी कथाएं प्रसिद्ध हैं परन्तु सबसे आश्चर्यजनक कथा है पागल बाबा की| घटना यह थी कि एक बहुत गरीब ब्राह्मण कृष्ण जी को बहुत मानता था| पारिवारिक समस्या के कारण उसे धन की आवश्यकता हुई। तो उसने एक साहूकार से कुछ कर्ज़ लिया|

वह थोड़े थोड़े कर के कर्ज़ चूका रहा था लेकिन आखिरी किश्त देने से पहले ही साहूकार की नियत बदल गयी| उसने ब्राह्मण को कोर्ट का नोटिस भेजा जिसमें लिखा था कि उसने कर्ज़ नहीं चुकाया है, इसलिए पूरी धनराशि ब्याज के साथ साहूकार को वापिस की जाए|

ब्राह्मण बहुत घबरा गया। साहूकार के पास जाकर उसने बहुत विनती की मगर कोई असर नहीं हुआ। फिर कोर्ट में भी ब्राह्मण ने यही कहा कि उसने कर्ज़ की आखिरी किश्त के आलावा सारा ऋण चूका दिया है| जज ने उससे अपनी बात साबित करने के लिए कहा तो उत्तर में उसने दुखी होकर कहा कि बिहारी जी के आलावा कौन जानेगा|

अदालत ने कृष्ण मंदिर में नोटिस भेज दिया| वह नोटिस कृष्ण जी की मूर्ति के आगे रख दिया गया और सभी इस बात को भूल गए| अगली तारिख पर एक बूढ़ा आदमी गवाही देने अदालत पहुंचा जिसने जज को बताया कि उसने ब्राह्मण को कर्ज़ वापिस करते हुए देखा है| उस बूढ़े व्यक्ति ने तारिख, वार, रकम की छोटी से छोटी जानकारी अदालत के सामने रखी|

जज ने आगे की जाँच का आदेश दिया| जाँच में साहूकार के बही-खातों में धनराशि दर्ज थी परन्तु गलत नामों से| जज ने ब्राह्मण को निर्दोष करार कर दिया परन्तु जज को संतुष्टि नहीं मिली| जज के मन में कई सवाल उठ रहे थे जैसे- ब्राह्मण को किसी भी चीज़ का ध्यान नहीं था और उस गवाह को सारी बातें कैसे याद थी जबकि वह काफी बूढ़ा था? या ब्राह्मण के लिए किसी भी व्यक्ति ने गवाही नहीं दी उस बूढ़े व्यक्ति ने उसकी मदद क्यों की?

उसने इन सब सवालों का जवाब जानने के लिए ब्राह्मण को बुलवाया और पूछा की वो गवाह कौन था? ब्राह्मण ने कहा कि वह उस व्यक्ति को नहीं जानता पर बिहारी जी के अलावा और कौन हो सकता है| जज ने हँसते हुए कहा मज़ाक छोड़ो और सच बताओ| ब्राह्मण ने गंभीर हो कर कहा की सच में उसे नहीं पता की वो कौन था|

जज संतुष्ट नहीं हुआ और कृष्ण मंदिर जा पहुंचा| वहां सेवा कर रहे लोगों से इस बारे में पूछा तो उनका कहना ये था की जितने भी पत्र आते हैं वो सब कृष्ण जी की मूर्ति पर चढ़ा दिए जाते हैं और जहाँ तक बूढ़े व्यक्ति की बात है तो यहां कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो गवाही देने गया हो|

जज इस बात को सुन कर बहुत हैरान हो गए| उन्हें पता चल गया था की जो व्यक्ति गवाही देने आया वो कोई और नहीं साक्षात कृष्ण जी थे| इसके बाद उन्होंने अपनी नौकरी और घर-परिवार छोड़कर वृन्दावन में ठाकुर को ढूंढ़ने लगे|

अब जज पागल हो गया, वह भंडारों में जाता और पत्तलों पर से जुठन उठाता। उसमें से आधा जूठ ठाकुर जी की मूर्ति को अर्पित करता आधा खुद खाता। इसे देख कर लोग उसके खिलाफ हो गये और उसे मारते पीटते पर वो ना सुधरा। एक भंडारे में लोगों ने अपनी पत्तलों में कुछ ना छोड़ा ताकि ये पागल ठाकुर जी को जूठ ना खिला सके।

पर उसने फिर भी सभी पत्तलों को पोंछ-पाछकर एक निवाला इकट्ठा किया और अपने मुँह में डाल लिया| जैसे ही उसने निवाला मुँह में डाला उसे ख्याल आया की वो ठाकुर को खिलाना तो भूल ही गया है| उसने वो निवाला अन्दर ना लिया कि अगर पहले मैं खा लूंगा तो ठाकुर का अपमान होगा और थूका तो अन्न का अपमान होगा| तभी एक सुंदर बालक जज के पास आया और बोला क्यों जज साहब आज मेरा भोजन कहाँ हैं?

तब जज ने हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी और रोने लगे| कृष्ण स्वरुप बालक ने जज को कहा कि रोज़ तू मुझे दूसरों का जूठा खिलाता है आज अपना भी खिला दे| इसे सुन जज पागल हो गया और अपने प्राण वहीं त्याग दिए| तो वही जज पागल बाबा के नाम से जाना गया|

Previous Article

कछुआ पालने से किस प्रकार आपको हो सकता है लाभ

Next Article

क्यों रोज़ घटता है गोवर्धन पर्वत?

View Comments (1)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *