गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा की जाती है तथा गुरुवार का व्रत रखा जाता है। गुरुवार का व्रत रखने का बहुत महत्व है। इससे परिवार में सुख शांति बनी रहती है। इसलिए हमें गुरुवार का व्रत अवश्य रखना चाहिए। आइए जानते हैं बृहस्पति व्रत से जुड़ी कथा-
पुराने समय की बात है। भारत के किसी राज्य में एक प्रतापी और दानी राजा राज करता था। हर गुरुवार को वह व्रत रखता था तथा गरीबों और ब्राह्मणों को दान देता था। परन्तु यह बात उसकी रानी को पसन्द नही थी। वो स्वयं भी ना व्रत रखने में विश्वास रखती थी और ना ही किसी को दान देती थी।
एक दिन रानी महल में अकेली थी। क्योंकि राजा शिकार खेलने के लिए जंगल में गया हुआ था। उस दिन बृहस्पति देव साधू के वेष में महल में आते हैं और रानी से भिक्षा मांगते हैं। परन्तु रानी भिक्षा देने से इंकार कर देती है। रानी साधु से कहती है कि वह दान पुण्य से बहुत तंग हो गयी है क्योंकि उसका पति गरीबों पर बहुत धन लुटाता है। वह साधु के आगे अपनी इच्छा रखती है और कहती है कि आप कुछ ऐसा उपाय बताएं कि हमारा सारा धन नष्ट हो जाये। जिससे कोई दान पुण्य ही नही होगा और मैं शांति से रह पाऊँगी।
तब साधु के रूप में आएं बृहस्पतिदेव ने कहा- हे देवी, तुम बड़ी ही विचित्र हो। क्योंकि लोग तो इसलिए दुखी होते हैं कि उनके पास धन या संतान नही है परन्तु तुम्हारे दुखी होने का कारण तुम्हारे पास अधिक धन है। अगर तुम्हारे पास अधिक धन है तो उसे शुभ कार्यों में लगायो जैसे कि कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचे का निर्माण कराओ। परन्तु रानी को को यह बात पसन्द नही आई। उसने साधू से कहा की उसे ऐसा धन नही चाहिए जिसे वह दान पुण्य के कामों में लगाए।
रानी की बात सुनकर साधु एक उपाय बताता है जिससे उसका सारा धन नष्ट हो जायेगा। साधु ने रानी से कहा कि गुरुवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस मदिरा खाना, कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना. इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जाएगा।
अभी यह उपाय करते हुए केवल तीन गुरुवार ही बीते थे कि उसकी सारी धन संपत्ति नष्ट हो गयी। भोजन के लिए राजा का पूरा परिवार तरसने लगा। तब राजा रानी से यह कहकर दूसरे देश चला गया कि यहां उसे सभी जानते हैं इसलिए वह यहां रहकर कोई छोटा कार्य नही कर पायेगा। वहां राजा जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता। इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
एक बार जब रानी और दासी दोनों को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा तब रानी ने अपनी दासी से कहा- हे ! दासी, पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है। वह बहुत धनवान है। तुम उसके पास जाकर पैसे और खाने की सामग्री लेकर आओ ताकि थोड़ी-बहुत गुजर-बसर हो जाए।
रानी के कहने पर दासी रानी की बहन के पास गयी। उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन उस समय बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी। कथा सुनने में व्यस्त रानी की बहन ने दासी की बात नही सुनी। कोई उत्तर ना मिलने पर दासी निराश होकर वापिस आ गयी तथा आकर रानी को सारी बात बताई। यह सुनकर रानी बहुत दुखी हुई। दूसरी तर रानी की बहन ने सोचा के व्रत के कारण वह अपनी बहन की दासी को जवाब नही दे पायी। इससे दासी और मेरी बहन बहुत दुखी हुई होगीं।
इसलिए रानी की बहन अपनी पूजा समाप्त कर के रानी के पास आयी और रानी को उसकी दासी की बात न सुनने का कारण बताने लगी। उसने बताया कि वह बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी और जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं। यह बताने के बाद रानी की बहन ने रानी से दासी को भेजने का कारण पूछा।
रानी ने सारी कहानी अपनी बहन को बताई। तब रानी की बहन ने रानी को बृहस्पति देव का व्रत रखने की सलाह दी और कहा भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। तुम्हे भी वृहस्पतिवार का व्रत रखना चाहिए ऐसा करने से वृहस्पतिदेव तुम्हारी सभी इच्छाये जरूर पूरी करेंगे। रानी की बहन बोली – देखो शायद तुम्हारे घर में कुछ अनाज रखा हो। बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिला। यह सब देख दासी रानी से कहने लगी कि जब उन्हें खाना नही मिलता तो वह व्रत ही करते हैं तो क्यों न हम बृहस्पति देव के व्रत की विधि पूछ लें।
दासी की सलाह से रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा। उसकी बहन ने बताया, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें। इससे बृहस्पतिदेव प्रसन्न होते हैं। व्रत और पूजन विधि बताकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई।
हफ्ते बाद जब गुरुवार आया तो रानी और दासी दोनों ने विधि अनुसार व्रत रखा। व्रत में पीला भोजन कहाँ से लाएं ये सोचकर दोनों परेशान थीं। परन्तु बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे। इसलिए वे एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए। भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया।
इसके बाद से उन्होंने हर गुरुवार को व्रत रखना शुरू किया। बृहस्पति देव की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति आ गई। परन्तु धीरे धीरे रानी व्रत रखने में आलस्य करने लगी तब दासी ने रानी को समझाया कि भगवान बृहस्पति की कृपा से ही उन्हें यह धन मिला है इसलिए हमें व्रत रखने में आलस्य नही करना चाहिए तथा इस धन को दान पुण्य में इस्तेमाल करना चाहिए।
व्रत रखने की विधि-
व्रत वाले दिन सुबह बृहस्पति देव की पूजा करनी चाहिए।बृहस्पति देव की पूजा में पीले फूल, चने की दाल, मुनक्का, पीली मिठाई, पीले चावल और हल्दी चढ़ाई जाती है। इस व्रत में केले के पेड़ की पूजा की जाती है।
इस दिन केले दान स्वरुप देने चाहिए। शाम के समय बृहस्पतिवार की कथा सुननी चाहिए और बिना नमक का भोजन करना चाहिए। भोजन केवल एक बार ही करना चाहिए।
बृहस्पति देव की आरती
आरती बृहस्पति देवता की
जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा ।
छि छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहत गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥