मगध क्षेत्र के गर्भ में स्थित गया का नाम सुनते ही हमारे जहन में पवित्र स्थल का प्रतिबिम्ब अंकित हो जाता है जहाँ लोग अपने पितरों की मुक्ति के लिए पिंड दान और तर्पण करने जाते हैं| लेकिन क्या आप जानते हैं की ये मोक्ष स्थली किसी देवता की वजह से नहीं बल्कि एक राक्षस की वजह से बनी है| गया सिर्फ हिन्दुओं का पवित्र स्थल ही नहीं बल्कि बौध धर्म के अनुयायियों के लिए भी बड़ी मान्यता रखता है| गया ही वो स्थान है जहाँ बौधों के पूजनीय भगवान् बुध को दिव्या ज्ञान की प्राप्ति हुई थी| आप आज भी उस दिव्य पीपल के पेड़ के दर्शन कर सकते हैं जिसे बोधि वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है|
बहुत समय पहले की बात है मगध में गया नाम का एक असुर पैदा हुआ| किन्तु वो असुरों के विपरीत बड़े ही धार्मिक प्रवृति का था उसका मन भगवान् विष्णु की सेवा करने में ज्यादा लगता था| उसके भक्ति भाव से प्रसन्न हो कर भगवान् विष्णु ने उसे साक्षात दर्शन दिया और वर मांगने को कहा इसपर गयासुर ने कहा प्रभु मेरे पास आपका दिया सब कुछ है| अगर कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे ये वर दीजिये की बड़ी से बड़ी विपत्ति आने पर भी मैं आपकी भक्ति करना ना छोडू|
गयासुर के ये वचन सुन कर भगवान् विष्णु गदगद हो गए और कहा की जो भी प्राणी तुम्हारे दर्शन कर लेगा या तुम्हारा स्पर्श मात्र कर लेगा उसने चाहे कितने भी पाप किये हों वो सीधा बैकुंठ में स्थान पायेगा| ये कह कर भगवान् विष्णु अंतर्ध्यान हो गए| गयासुर पहले की भाति अपने ईस्ट की सेवा भक्ति में तल्लीन रहने लगा इस प्रकार उसके जितने भी रिश्तेदार और जानने वाले थे उन्होंने लाखो पाप करने के बावजूद बैकुंठ में परम पद पाया|
ये देखकर सारे देवता और यमराज बड़े विचलित हुए की सारे पापी जिन्होंने सदा ही अधर्म के रास्ते पर चल कर मनुष्यों का अहित किया है और जिन्होंने कभी भी कोई अच्छा काम नहीं किया वो नरक की बजाय बैकुंठ पहुँच रहे हैं| सभी देवता भगवान् विष्णु की शरण में पंहुचे और भगवान् से प्रार्थना करने लगे की अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन सारी धरती से धर्म का नामो निशान मिट जाएगा| इस पर भगवान् विष्णु ने ब्रह्मा जी को इसका कोई हल निकालने को कहा|
तब ब्रम्हा जी ने गयासुर से आग्रह किया की आप के दर्शन या स्पर्श मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है इसलिए सभी देवता आपकी पीठ पर यज्ञ करना चाहते हैं| इसके लिए गयासुर सहर्ष तैयार हो गया और फल्गु नदी की किनारे जाकर लेट गया उसके बाद सभी देवताओं के साथ भगवान् विष्णु भी अपनी गदा लेकर उसकी पीठ पर विराजमान हो गए और उसे स्थिर करने के लिए एक शिला भी रखी गयी जो आज प्रेतशिला के नाम से जानी जाती है| साथ ही भगवान् विष्णु ने ये भी कहा की तुम्हारा ये बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा इस जगह को तुम्हारे नाम से जाना जायेगा और जो भी यहाँ अपने पितरों की मुक्ति के लिए पिंडदान करेगा उसके पितर बैकुंठ में स्थान प्राप्त करेंगे|