कर्ण कौरवों का सेनापति था। महाभारत युद्ध के सतरहवें दिन कर्ण का वध अर्जुन द्वारा दिव्यास्त्र चलाने से हुआ। परन्तु कर्ण की मृत्यु का कारण केवल अर्जुन द्वारा किया गया दिव्यास्त्र का वार नहीं था। कर्ण की मृत्यु के पीछे कुछ ऐसे कारण थे जिनके कारण अर्जुन द्वारा कर्ण का वध सम्भव हो पाया।
कर्ण को स्वयं को सूत पुत्र समझते थे। उन्हें इस सत्य का ज्ञान नहीं था कि वे एक क्षत्रिय हैं। गुरु परशुराम जी ने क्षत्रियों को ज्ञान न देने की प्रतिज्ञा ली हुई थी। और कर्ण ने उनके सामने क्षत्रियों के समान साहस का परिचय दिया था। जिस कारण गुरु परशुराम जी बहुत क्रोधित हो गये थे और क्रोध में आकर उन्होंने कर्ण को शाप दे दिया कि तुम मेरी दी हुई शिक्षा उस समय भूल जाओगे। जब तुम्हें इसकी सबसे ज्यादा जरुरत होगी। अपनी वास्तविकता का ज्ञान न होना ही कर्ण के लिए मृत्यु का कारण बन गया।
एक बार कर्ण अपने रथ से बहुत तेज गति में कहीं जा रहे थे। तेज रफ्तार रथ के नीचे एक गाय की बछिया आ गई जिससे उसकी मृत्यु हो गई। यह देखकर एक ब्राह्मण को बहुत क्रोध आया और उसने कर्ण को शाप दे दिया कि जिस रथ पर चढ़कर अहंकार में तुमने गाय के बछिया का वध किया है। उसी प्रकार निर्णायक युद्ध में तुम्हारे रथ का पहिया धरती निगल जाएगी और तुम मृत्यु को प्राप्त होगे। महाभारत के निर्णायक युद्ध के दौरान कर्ण के रथ का पहिया धरती में धंस गया और इसी बीच अर्जुन ने कर्ण पर दिव्यास्त्र से वार कर दिया और उसी समय कर्ण परशुराम जी के शाप के कारण अपनी शिक्षा भूल गये और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग नहीं कर पाए और मृत्यु को प्राप्त हो गए।
कर्ण की मृत्यु का कारण उनका महादानी होना भी था। कर्ण हर दिन सूर्य देव की अराधना करते थे। उस समय जो भी कर्ण से दान मांगता था, कर्ण उसे अवश्य दान देते थे। अर्जुन की रक्षा के लिए देवराज इंद्र ने कर्ण से भगवान सूर्य से प्राप्त कवच और कुंडल दान में मांग लिया। और अर्जुन को वह दान में देना पड़ा। दिव्य कवच और कुंडल कर्ण दान नहीं करते तो उन पर किसी दिव्यास्त्र का प्रभाव नहीं होता और वह जीवित रहते। इस तरह कर्ण का दानवीर होना भी उनकी मृत्यु का कारण बना।
कवच और कुंडल दान करने के बदले कर्ण को देवराज इंद्र से शक्ति वाण मिला था। इस वाण का प्रयोग कर्ण केवल एक बार कर सकते थे। इसलिए कर्ण ने इस वाण को अर्जुन के लिए बचाकर रखा था। परन्तु युद्ध में घटोत्कच कौरवों पर भारी पड़ रहा था। इसलिए दुर्योधन ने कर्ण को घटोत्कच पर दिव्यास्त्र से वार करने पर विवश कर दिया। अगर ऐसा नहीं होता तो महाभारत के युद्ध का परिणाम कुछ और ही होता।
कर्ण की मृत्यु के पीछे एक बड़ा कारण स्वयं भगवान श्री कृष्ण थे जिन्होंने इंद्र को वरदान दिया था कि वह महाभारत के युद्ध में अर्जुन का साथ देंगे और सूर्य के पुत्र कर्ण पर विजय प्राप्त करेंगे।
कर्ण युद्ध में दुर्योधन का साथ दे रहे थे और दुर्योधन एक अधर्मी था। अधर्म का साथ देने की वजह से कर्ण को वीरगति प्राप्त हुई।
महाभारत युद्ध में जब कर्ण को कौरवों का सेनापति घोषित किया गया। तब कुंती ने कर्ण के सामने उसकी सच्चाई जाहिर कर दी और बताया कि पांडव तुम्हारे भाई हैं। इस बात से कर्ण के अंदर पांडवों के प्रति भावुकता उत्पन्न हो गई और यही भावुकता युद्ध के दौरान उनके लिए घातक बन गई।