प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले स्वस्तिक चिन्ह दीवार, थाली या ज़मीन पर बनाकर उसकी पूजा की जाती है| इसे शुभ मंगल का प्रतीक कहा गया है| स्वस्तिक शब्द ‘सु’ एवं ‘अस्ति’ के मिश्रण से बना है, सु का अर्थ होता है- शुभ और अस्ति का अर्थ- होना अथार्त ‘शुभ होना’ और ‘मंगल होना’| स्वस्तिक चिन्ह भगवान श्री गणेश जी का स्वरुप है, जो अमंगल और सभी विघ्न बाधाएं दूर करता है| जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई मंगल व शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वस्तिक को ही अंकित किया जाता है|
स्वस्तिक दो तरह का होता है- एक दायां जो कि नर का प्रतीक है और दूसरा बायां जो कि नारी का प्रतीक है| स्वास्तिक में चार प्रकार की रेखाएं होती हैं, जिनका आकार एक समान होता है। मान्यता है कि यह रेखाएं चार दिशाओं – पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण की ओर इशारा करती हैं। लेकिन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह रेखाएं चार वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक हैं। कुछ यह भी मानते है कि यह चार रेखाएं सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के चार सिरों को दर्शाती हैं।
स्वस्तिक को सभी धर्मों में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। अलग- अलग देशों में स्वस्तिक को अलग- अलग नामों से जाना जाता है। सिन्धु घाटी की सभ्यता आज से चार हजार साल पुरानी है। स्वस्तिक के निशान सिन्धु घाटी की सभ्यता में भी मिलते हैं। बौद्ध धर्म में स्वस्तिक को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि बौद्ध धर्म में भगवान गौतम बुद्ध के ह्रदय के ऊपर स्वस्तिक का निशान दिखाया गया है। स्वस्तिक का निशान मध्य एशिया के सभी देशों में मंगल तथा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है|
स्वस्तिक लाल रंग से अंकित होता है क्योंकि भारतीय संस्कृति में लाल रंग की बहुत विशेषता है| मंगल कार्यों में सिन्दूर, रोली या कुमकुम लाल रंग के ही होते हैं| लाल रंग शौर्य एवं विजय का प्रतीक है और प्रेम, रोमांच को दर्शाता है|स्वास्तिक का प्रयोग उचित स्थान पर करना चाहिए, शौचालय एवं गंदे स्थानों पर इसका प्रयोग वर्जित है। अगर स्वस्तिक का प्रयोग पवित्र और शुद्ध स्थान पर नहीं हो रहा तो इसके परिणाम से बुद्धि एवं विवेक समाप्त हो जाता है; तनाव, रोग एवं क्लेश में वृद्धि होती है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। प्रत्येक मंगल व शुभ कार्य में इसे शामिल किया जाता है। इसका प्रयोग रसोईघर, तिजोरी, स्टोर, प्रवेशद्वार, मकान, दुकान, पूजास्थल एवं कार्यालय में किया जाता है।
स्वस्तिक के उपयोग से मिल सकते है लाभ- स्वस्तिक बनाकर उसके ऊपर देवता की मूर्ति रखने से और दीपक जलाने से हो सकते है देवता खुश और कर सकते है सबकी मनोकामनाएं पूर्ण| व्यापार बढ़ाने के लिए 7 गुरूवार तक उत्तर-पूर्वी कोने को गंगाजल से धोकर वहाँ हल्दी से स्वस्तिक बनाएं और उसकी पूजा करें। इसके बाद गुड़ का भोग लगाएं। घर को बुरी नजर से बचाने व उसमें सुख-समृद्धि के वास के लिए मुख्य द्वार के दोनों तरफ स्वस्तिक चिह्न् बनाया जाता है|
तिब्बती इसे अपने शरीर पर गुदवाते हैं तथा चीन में इसे दीर्घायु एवं कल्याण का प्रतीक माना जाता है।