आप सब ने रामायण के अनेक प्रसंग सुने होंगे। परन्तु आज हम जो प्रसंग आप को बताने जा रहे हैं उसके बारे में बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा। हनुमान जी की तरह लक्ष्मण जी की भी श्री राम के प्रति भक्ति बहुत अदभुत थी। आइये जानते हैं लक्ष्मण जी की श्री राम के लिए त्याग की कथा-
श्री राम के अयोध्या के राजा बनने के पश्चात एक दिन अगस्त्य मुनि श्री राम से मिलने अयोध्या आए। वार्तालाप करते हुए लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया।
श्री राम ने उन्हें बताया कि किस तरह उन्होंने रावण तथा कुम्भकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया। उन्होंने अगस्त्य मुनि को लक्ष्मण जी की वीरता के बारे में बताते हुए कहा कि लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों का वध किया।
यह सुनकर अगस्त्य मुनि ने श्री राम से कहा कि चाहे रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे। परन्तु लक्ष्मण ने इंद्रजीत का वध किया। इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए।
अपने भाई की वीरता की प्रशंसा सुनकर श्री राम बेहद प्रसन्न हुए और उत्सुकता से उन्होंने ने अगस्त्य मुनि से पूछा कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल कैसे था?
श्री राम की उत्सुकता को शांत करने के लिए अगस्त्य मुनि ने श्री राम को बताया कि इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था, जो चौदह वर्षों तक न सोया हो, जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो और चौदह साल तक भोजन न किया हो।
यह सुनकर श्री राम बोले वनवास के समय मैं नियमित रूप से लक्ष्मण को उनके हिस्से के फल-फूल देता रहा हूँ। मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो, और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है?
अगस्त्य मुनि श्री राम की बात सुनकर मुस्कुराए और कहा क्यों न लक्ष्मणजी से पूछा जाए।
अपने प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए श्री राम ने लक्ष्मण जी को बुलाया और कहा कि हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे, फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा? फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे और 14 साल तक बिना सोये कैसे रहे?
लक्ष्मण जी ने श्री राम को बताया कि मैंने कभी सीता माँ के चरणों के ऊपर देखा ही नही। आपको स्मरण होगा जब सुग्रीव ने हमें सीता माँ के आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा तो मैं उनके पैरों के आभूषण के सिवाय कोई और आभूषण नही पहचान पाया था।
आप और माता एक कुटिया में सोते थे। मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था। जब निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था। ऐसे में निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेगी। आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था।
मैं जो फल-फूल लाता था, आप उसके तीन भाग करते थे। एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो। आपने कभी फल खाने को नहीं कहा, फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे कैसे खाता? मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया और वह अभी भी उसी कुटिया में रखे होंगे। श्री राम के कहने पर लक्ष्मण जी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और उन्हें लाकर दरबार में रख दिया। जब फलों की गिनती हुई, सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे।
उन सात दिनों के हिस्से के फलों के बारे में लक्ष्मण जी ने बताया कि उन सात दिनों में फल आये ही नही – जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हम निराहारी रहे। जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता। जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे, जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे, जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे, जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी और जिस दिन आपने रावण-वध किया। इन दिनों में हमने भोजन नही किया।
विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था- बिना आहार किए जीने की विद्या। उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका जिससे इंद्रजीत मारा गया। भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें ह्रदय से लगा लिया।