देवी पार्वती का जन्म हिमनरेश हिमावन(पहाड़ो के स्वामी) तथा मैनावती के घर हुआ। देवी पार्वती के पिता हिमालय के अवतार थे। उमा, गोरी, अम्बिका भवानी आदि नामो से भी देवी पार्वती को पुकारा जाता है। देवी पार्वती शक्ति का अवतार तथा भगवान शिव की पत्नी हैं।
देवी पार्वती का जन्म पहले देवी सती के रूप में हुआ था। देवी सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थी।देवी सती का विवाह भगवान शिव से हुआ। एक बार प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ करवाया जिसमे उन्होंने सभी देवी देवतायों को आमन्त्रित किया। परन्तु अपने दामाद शिव को उन्होंने महायज्ञ के लिए आमंत्रित नही किया। इस बात से क्रोधित होकर देवी सती अपने पिता दक्ष के पास पहुंच गयी। लेकिन दक्ष ने भगवान शिव के विषय में देवी सती से अपमानजनक बाते कही। जिस कारण देवी सती ने वहीं यज्ञ कुंड में अपनी देह त्याग दी।
देवी सती ने देह त्यागते समय भगवान हरि से वर माँगा कि वो जन्म जन्म के लिए शिवजी के चरणों से जुडी रहें। इसी कारण उनका जन्म हिमाचल में पार्वती के रूप में हुआ। पहाड़ों के स्वामी यानी कि पर्वतराज के घर उनका जन्म हुआ इसलिए उनका नाम पार्वती रखा गया। माना जाता है कि जब देवी पार्वती का जन्म हुआ तब से वहां की नदियों में पवित्र जल बहता है तथा सभी पशु पक्षी सुखी रहते हैं।
एक दिन नारद जी हिमनरेश के घर पधारे। तब हिमनरेश ने अपनी पुत्री पार्वती को उनके समक्ष प्रस्तुत किया और उनसे देवी पार्वती के गुण तथा दोष जानने चाहे। तब नारद जी ने रहस्ययुक्त कोमल वाणी में कहा कि कन्या सब गुणों की खान है तथा स्वाभाव से सुन्दर, सुशील तथा समझदार है। यह अपने पति को सदैव प्यारी रहेंगी। यह सारे जगत में पूज्य होंगी। साथ ही नारद जी ने ये भी बताया कि इनके पति में कुछ अवगुण भी होंगे। इनके पति योगी, जटाधारी, निष्काम, नगन तथा अमंगल वेष वाले होंगे।
यह सुनकर देवी पार्वती तो मन ही मन प्रसन्न हुई। क्योंकि वे जानती थी कि उनके पति तो शिव ही हैं। परन्तु उनके माता पिता को यह सुनकर दुःख हुआ तथा उन्होंने नारद जी से इसका उपाय जानना चाहा। तब नारद जी ने कहा कि विधाता का लिखा हुआ बदला नही जा सकता। परन्तु ये सारे अवगुण सदगुण बन सकते हैं, अगर देवी पार्वती का विवाह भगवान शिव से हो जाये। क्योंकि ये सारे गुण भगवान् शिव में मौजूद हैं। परन्तु भगवान शिव को प्रसन्न करना आसान नही है। परन्तु घोर तप कर के उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। ऐसा कहकर तथा सबको आशिर्वाद देकर नारद जी वहां से चले गये।
नारद जी के परामर्श से देवी पार्वती ने तप आरम्भ किया। देवी पार्वती का तप बहुत कठोर था। कुछ दिन उन्होंने जल और वायु का भोजन किया और कुछ दिन कठोर उपवास किये। जो बेल पत्र सूखकर पृथ्वी पर गिरते थे 3000 वर्ष उन्ही का सेवन किया। देवी पार्वती का घोर तप देखकर आकाश से आवाज़ आयी- हे पर्वतराज की कुमारी! सुन तेरा मनोरथ सफल हुआ। अब तुझे शिवजी मिलेंगे। यह सुनकर देवी पार्वती प्रसन्न हो गयी और उनका शरीर हर्ष से पुलकित हो गया।