भारत में बहुत से चमत्कारिक धार्मिक स्थल हैं और “खाटू श्याम मंदिर” भी इन्हीं प्रसिद्द स्थलों में से एक है| यह मंदिर भीम के पोते और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक का है जहाँ इनकी श्याम-रुप में पूजा की जाती है| ऐसी मान्यता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं| साथ ही यहाँ आने वाले श्रधालुओं के अनुसार बाबा खाटू श्याम हर बार अलग दीखते हैं उनकी शारीरिक बनावट हो या उनकी भाव भंगिमाएं हर बार देखने पर पिछली बार से अलग प्रतीत होती है|
भीम के पुत्र घटोत्कच में पिता भीम के सामान बल और माता हिडिम्बा के सामान मायावी शक्ति दोनों के ही गुण मौजूद थे| इसी वजह से घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक में भी बचपन से ही वीर और महान योद्धा के गुण मौजूद थे| कुछ बड़े होने पर बर्बरीक ने भगवान शिव की तपस्या कर उनसे वरदान स्वरुप तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे| साथ ही अग्निदेव की आराधना कर ऐसा धनुष भी प्राप्त किया था जिसमे तीनो लोकों को जीत लेने की क्षमता व्याप्त थी और इसी कारण बर्बरीक तो तीन बाण धारी के नाम से भी जाना जाता है|
जब बर्बरीक को पता चला की पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध हो रहा है तो उसने अपनी माता से आशीर्वाद लिया और पुछा की मुझे किसकी और से लड़ना चाहिए| उसकी बात सुन कर उसकी माता ने सोचा की कौरवों की ओर से तो कई धुरंधर लड़ रहे है और पांडवों की स्थिति कुछ कमजोर ही दिख रही है|
बर्बरीक की माता ने कहा की पुत्र तो हारे का सहारा बनना और कमजोर पक्ष की ओर से ही युद्ध में लड़ना इतना सुनते ही बर्बरीक ने अपने नीले घोड़े पर बैठते हुए अपनी माता को वचन दिया की वो सदा ही हारे का सहारा बनेंगे और रणभूमि की ओर चल पड़े|इधर भगवान् श्री कृष्ण जो की सर्वव्यापी थे पांडवों की मजबूत स्थिति देख कर समझ गए की बर्बरीक अपनी माता को दिए वचन के अनुसार कमजोर पक्ष की ओर से ही युद्ध में सम्मिलित होगा और उसके कौरव पक्ष से लड़ने का मतलब पांडवों की हार था|
तब भगवान् श्री कृष्ण ने ब्राह्मण वेश में जाकर बर्बरीक से दान में उसका मस्तक मांग लिया ये सुनकर बर्बरीक ने दान देना स्वीकार कर लिया परन्तु पहले उसने ब्राह्मण का वास्तविक रूप देखने की इच्छा प्रकट की उसकी बात मानकर प्रभु ने अपने भव्य रूप में उसे दर्शन दिया| बर्बरीक ने सम्पूर्ण युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की और अपनी कटार से अपना शीश काट दिया| शीश कटते ही भगवान् श्री कृष्ण ने बर्बरीक के मुख में अमृत की बूँदें डाली और उसके मस्तक को ऊँची पहाड़ी पर रख दिया जहाँ से वो सारा युद्ध अपनी आँखों से देख सकें|
युद्ध समाप्त होने पर पांडवों में विवाद होने लगा की किसकी वजह से युद्ध में विजय की प्राप्ति हुई तो भगवान्ऐ श्री कृष्ण ने बर्बरीक से इसका उत्तर पूछा तो बर्बरीक ने उत्तर दिया की मुझे रणभूमि में सिर्फ आपका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखा साथ ही देवी जगदम्बा रक्तपान करती हुई वीभत्स रूप में दिखी उसके अलावा और कुछ नज़र नहीं आया ये सुनकर पांडव बड़े शर्मिंदा हुए|
तभी भगवान् श्री कृष्ण ने बर्बरीक को श्याम का नाम दिया और कहा की तुम धरती के सबसे बड़े दानवीर हो और माता को दिए गए वचन की वजह से तुम हारे का सहारा बनोगे| और कलयुग में जो भी इंसान तुम्हारे दर पर साफ़ ह्रदय और सच्ची भावना लेकर आएगा उसका सदैव ही भला होगा और तुम हारे का सहारा बनोगे|