श्री राम और सीता जी के प्रेम को हर कोई नहीं समझ सकता। कई घटिया सोच रखने वाले लोग आज भी श्री राम और सीता माता के चरित्र पर सवाल उठाते हैं। वह यह नहीं जानते की सीता जी ही नहीं बल्कि श्री राम ने तो उनके साथ अपने जान से भी प्यारे भाइयों और पुत्रों का भी त्याग कर दिया था।
जितना दुःख श्री राम के अवतार ने सहा उतना दुःख आज तक किसी भी अवतार को नहीं सहना पड़ा। जो लोग श्री राम से प्रेम करते हैं और उनके बारे में अच्छे से जानते हैं वह उनके बारे में ऐसा सोच भी नहीं सकते। और जो लोग उनपे सवाल उठाते हैं वह तो यक़ीनन नरक के भागीदार बनेंगे। श्री राम भक्तों को तो ऐसे व्यक्तियों से दूर ही रहना चाहिए। पाप के भागीदार क्यों बनना है?
श्रीमद वाल्मीकि रामायण में यह बताया गया है की जिस समय लक्ष्मण जी सीता माता को वन में छोड़ने गए वह लगातार रो रहे थे। वापिस आते वक़्त भी उनका यही हाल था।
लक्ष्मण जी अपनेआप को रोक ही नहीं पा रहे थे। उनसे कुछ बोला भी नहीं जा रहा था। राम जी और राजा दशरथ के सारथि सुरथ ने उन्हें उस भाविष्यवाणी से अवगत करवाया जिस में बताया गया था की श्री राम को अत्यधिक कष्ट भोगना पड़ेगा एवं सीता जी के वनवास के कारण भी बताया।
देवासुर संग्राम में भृगु ऋषि की पत्नी शुक्राचार्य की माँ ने राक्षसों के अपने आश्रम में शरण दी और उन्हें मारने आये देवताओ को मरना शुरू कर दिया था| तब अदिति पुत्र वामन ने उन्हें चक्र से मार गिराया था इसपर भृगु ऋषि ने उन्हें श्राप दिया की तुम्हे भी अपनी पत्नी से वियोग सहन होगा तुम कभी उसके साथ नही रह सकोगे (चिरकाल तक)|
जब भृगु को अपनी भूल का एहसास हुआ तो उन्होंने तपस्या कर भगवान् विष्णु से उनके श्राप को स्वीकार कर उनके सम्मान की रक्षा करने को कहा. तब उन्होंने त्रेता में रामावतार में इस श्राप को भुगतने का वरदान दिया जिसके फलस्वरूप गर्भवती सिता को राम जी को त्यागना पड़ा राजधर्म के चलते|
इतना ही नही वो भारत शत्रुघ्न और पुत्रो (लव-कुश) का भी त्याग कर देंगे ये सुन का लक्षमण को भाग्य पर विश्वास हुआ और वो शांत हो कर गए और भाई राम को साधुवाद दिया (अन्यथा उलाहना देके पाप करते), तब राम जी का भी शोक जाता रहा और दोनों ने राज्यभार फिर से संभाल लिया|
आगे जाके उन्होंने शत्रुघ्न को लवणासुर को मारने के बहाने त्याग दिया और उसने मथुरा बसाई, भारत जी को उनके पुत्रो के साथ अलग राज्य बसाने को कहा| लक्ष्मण को राम के सामने की गई प्रतिज्ञा के चलते प्राण दंड न दे के त्याग दिया और वो सभी भाइयो में सशरीर साकेत धाम जाने वाले पहले भाई थे|
ऐसे अनुपम त्याग और दुःख भरे जीवन से भरी हुई मर्यादा पुरुषोत्तम राम की कथा को सुन कर ज्ञानी जन भी रो देते है, हालाँकि साधारण लोगो को तो ये समझ ही नही आती है| आज के युग में भगवान् श्री राम के त्याग का कोई सानी नहीं है इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी कहा जाता है|