वेदों के अनुसार भगवान् शिव और पार्वती के दो पुत्र थे बड़े पुत्र कार्तिकेय और छोटे पुत्र गणेश। पुराणों के अनुसार कार्तिकेय के जन्म की कथा इस प्रकार है| देवी सती अपने पति भगवान शिव का पिता दक्ष द्वारा किए गए अपमान से क्रोधित होकर महाराजा दक्ष के यहाँ हो रहे यज्ञ के यज्ञ कुंड में कूद कर स्वयं को जला देती हैं| इधर देवी सती के आत्मदाह कर लेने से भगवान् शिव का मन सांसारिक मोह माया से उचट जाता है और वो सब कुछ छोड़ छाड़ कर हिमालय पर एकांत में जाकर तप करने लगते है|
इसी दौरान पहाड़ों के राजा हिमावन के घर देवी सती पुत्री के रूप में अवतरित होती हैं बहुत समय बाद पिता बनकर राजा हिमवान बड़े प्रसन्न होते हैं और उस पुत्री का नाम पार्वती रखा जाता है । इधर पृथ्वी पर तारकासुर नामक राक्षस का आतंक तो बढ़ता जा ही रहा था साथ ही स्वर्ग में बैठे देवताओं के लिए भी उसका आतंक सरदर्द बनता जा रहा था। तारकासुर को घोर तपस्या से वरदान मिला था कि भगवान् शिव की संतान के हाथो ही उसका विनाश हो सकता है।
परन्तु भगवान् शिव मोह के बंधन से मुक्त होकर हिमालय पर तपस्या में लीन थे। ऐसे में उनका पुत्र कहाँ से आता अतः देवताओं ने प्रेम के देवता कामदेव को यह कार्य सौंपा| कामदेव ने संसार के हितों को ध्यान में रख कर अपने बाण से भगवान् भोलेनाथ पर फूल फेंका, ताकि उनके मन में पार्वती के लिए प्रेम की भावना जागृत हो सके।
उस समय भगवान् शिव तपस्या में लीन थे कामदेव के द्वारा फेंके गए फूल से उनकी तपस्या भंग हो गयी थी|और तपस्या भंग होने से भगवान् शिव क्रोधित हो उठे। और गुस्से के मारे उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी जिससे कामदेव भस्म हो गए। परन्तु कामदेव की पत्नी रति के अनुनय विनय करने पर उन्होंने कामदेव को शरीर वापस दे दिया| लेकिन भस्म होने की वजह से रति के अलावा वह अन्य किसी को नजर नहीं आ सकते थे।
कामदेव द्वारा फेंके गए फूल के प्रभाव से भगवान् शिव अपने आप को देवी पार्वती की और आकर्षित होता महसूस कर रहे थे| परन्तु देवी सती के आत्मदाह और कामदेव द्वारा तपस्या भंग करने की घटना से भगवान् शिव इतने क्रोधित हो उठे थे की तीनो लोकों में उनके क्रोध की ऊष्मा व्याप्त हो गयी थी|
तब देवी गंगा जो की उनकी जटाओं में विराजमान थी उन्होंने उनके क्रोध को सरवन तक पहुँचाया जहाँ छह सर वाले ‘शरवण भव’ की उत्पत्ति हुई और इस बालक का लालन पालन 6 अप्सराओं ने किया था| बाद में देवी पार्वती द्वारा छहों सरों को जोड़ कर एक करने पर कार्तिकेय का जन्म हुआ| कार्तिकेय का जन्म ही तारकासुर के विनाश के लिए हुआ था और उन्होंने आगे चल कर देवताओं की सेना का नेतृत्व कटे हुए तारकासुर का वध किया था। कृत्तिकाओं यानि अप्सराओं द्वारा लालन पालन होने की वजह से इनका नाम ‘कार्तिकेय’ पड़ा।