हम सब जानते हैं कि भगवान शिव तथा पार्वती जी का निवास स्थान कैलाश पर्वत या केदारनाथ था। परन्तु इस सत्य की जानकारी केवल कुछ लोगों को ही है कि बद्रीनाथ धाम भी भगवान शिव तथा देवी पार्वती का विश्राम स्थान हुआ करता था। बद्रीनाथ में भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते थे। यह स्थान विष्णु जी को बहुत पसंद था। इसलिए उन्होंने इसे प्राप्त करने के लिए योजना बनाई।
पुराणों के अनुसार सतयुग में बद्रीनाथ में बेर का वन था। यहां शिवजी अपनी पत्नी देवी पार्वती के साथ रहते थे। अपनी योजना के अनुसार चलते हुए भगवान विष्णु ने बालक का रूप धारण कर लिया तथा जोर जोर से रोने लग गए।
बालक के रोने की आवाज सुनकर पार्वती जी को बहुत पीड़ा हुई और वह सोचने लगीं कि इस बीहड़ वन में यह कौन बालक रो रहा है? यह कहां से आया है? और इसकी माता कहां है? यही सब सोचकर माता को बालक पर दया आ गई और वह उस बालक को अपने घर ले आयी।
शिवजी उस बालक को देखकर समझ गए कि यह विष्णु जी की लीला है। इसलिए उन्होंने पार्वती जी को कहा कि वह उस बालक को घर के बाहर छोड़ दें। वह बालक स्वयं कुछ देर के बाद वहां से चला जाएगा। परन्तु दयामयी देवी पार्वती को बालक के रोने के आगे कुछ नही दिख रहा था। इसलिए वह उस बालक को घर में ले जाकर चुप कराकर सुलाने लगी।
जब बालक सो गया, देवी पार्वती जी बाहर आयी तथा शिवजी के साथ कुछ दूर भ्रमण के लिए चली गयी। भगवान विष्णु इसी पल का इन्तजार कर रहे थे। उनके जाते ही उन्होंने अपना असली रूप धारण किया तथा घर का द्वार अंदर से बन्द कर दिया।
भगवान शिव तथा पार्वती जी जब भ्रमण से लौटे तो उन्होंने देखा कि द्वार अंदर से बन्द है। देवी पार्वती तथा भगवान शिव ने बालक को द्वार खोलने के लिए कहा। परन्तु अंदर से विष्णु जी की आवाज आयी कि अब आप इस स्थान को भूल जाइए भगवन्। यह स्थान मुझे बहुत पसंद आ गया है। मुझे यहीं विश्राम करने दीजिए। अब आप यहां से केदारनाथ जाएं।
तब से लेकर आज तक विष्णु जी बद्रीनाथ में अपने भक्तों को दर्शन दे रहे हैं और भगवान शिव केदारनाथ में।