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भगवान् शिव के बारे में हम जितना जानते है उसके अनुसार भगवान् शिव के दो ही पुत्र थे भगवान् गणेश और भगवान् कार्तिकेय परन्तु शायद ही आपको पता हो की भगवान् शिव का एक पुत्र और भी था जो की दैत्य था| अब आप सोच रहे होंगे की भगवान् शिव का पुत्र और वो भी दैत्य ये कैसे संभव है कही ये मनगढ़ंत बात तो नहीं|
जी नहीं ये सत्य है बात उस समय की है जब भगवान् शिव कैलाश पर्वत पर अकेले बैठे थे| तभी देवी पार्वती ने सोचा क्यों न आज शिव जी के साथ मज़ाक किया जाए| उन्होंने सोचा की क्यों न मैं पीछे से जाकर उनकी आँखें बंद कर लूं देखती हूँ की वो मुझे पहचान पाते है या नहीं|देवी पार्वती ने शिव जी की आँखें अपनी हथेलियों से बंद कर दी जिससे सारा संसार अन्धकार में डूब गया तब भगवान् शिव ने अपनी तीसरी आँख खोली जिससे की संसार में प्रकाश कायम हो सके|
परन्तु तीसरी आँख की रौशनी में इतनी गर्मी थी की देवी पार्वती की हथेली पसीने से तर हो गयी और जो बूँदें पृथ्वी पर गिरी उससे एक भीषण बालक उत्त्पन्न हुआ| वो बालक देखने में बड़ा ही विकराल था उसकी गर्जना सुन कर स्वयं माता पार्वती भी एक बार को कांप उठी बालक अन्धकार में जन्म लेने की वजह से अँधा था| देवी पार्वती ने भगवान् शिव से अपने मज़ाक के लिए क्षमा मांगते हुए कहा की ये बालक हम दोनों के स्पर्श के कारण पैदा हुआ है इसलिए ये हमारा पुत्र हुआ|
भगवान् शिव ने अंधकासुर को अपने परमभक्त हिरण्याक्ष को दे दिया क्योंकि उसका कोई पुत्र नहीं था| वाराह अवतार के द्वारा हिरण्याक्ष के वध के बाद से अंधकासुर ने भगवान् विष्णु और बाकी देवताओं को अपना परम शत्रु मानना शुरू कर दिया था| अंधकासुर ने दैत्यगुरु शुक्राचार्य की बात मान कर ब्रम्हा जी की तपस्या आरम्भ कर दी ब्रम्हा जी ने प्रसन्न हो कर अंधकासुर से मनवांछित वर मांगने को कहा तो उसने पहले वरदान में त्रिकालदर्शी नेत्र मांगे जो की ब्रम्हा जी ने मान लिया| दुसरे वर में उसने अमरता का वरदान माँगा जो की ब्रम्हा जी ने मना कर दिया उन्होंने कहा की जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है तो अंधकासुर ने कहा की ठीक है अगर मैं अपनी माता पर बुरी नज़र डालूं तभी मेरी मृत्यु हो| ब्रम्हा जी ने तथास्तु कहा और मनवांछित वर पाकर अंधकासुर बेकाबू हो गया|
उसने तीनो लोकों में हाहाकार मचा रखा था मनुष्य देवता सभी त्राहि त्राहि कर रहे थे परन्तु ब्रम्हा जी के वरदान की वजह से कोई अंधकासुर के आतंक को नहीं रोक पा रहा था| आखिर तीनो लोकों को जीतने के बाद अंधकासुर की विवाह करने की इच्छा हुई उसने अपने दूतों को ब्रम्हाण्ड की सबसे सुन्दर स्त्री का पता लगाने भेजा| उसके दूतों ने बताया की देवी पार्वती ब्रम्हाण्ड की सबसे सुन्दर स्त्री है आप उनसे विवाह कर लो| अंधकासुर ताकत और सत्ता के मद में चूर था उसने बिना सोचे समझे देवी पार्वती के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया| देवी पार्वती ने उससे कहा की वो उसकी माता हैं परन्तु अन्धकासुर ने उन्हें जबरदस्ती लेकर जाने की कोशिश की| जब भगवान् शिव को इस बात का पता चला तो उन्होंने अंधकासुर का सर काट दिया परन्तु उसके रक्त की बूँद जहाँ गिरती वहां दूसरा अंधकासुर पैदा हो जाता|
तब शिव जी ने सोचा की अब क्या किया जाए फिर उन्होंने अंधकासुर को अपने त्रिशूल पर उठा लिया ताकि उसकी रक्त की बूँद धरती पर ना गिरने पाए जिससे की किसी दुसरे दैत्य की उत्त्पत्ति न हो सके| इस प्रकार भगवान् शिव ने अपने ही पुत्र का वध कर दिया|