माना जाता है कि भगवान शिव की पूजा – अराधना सबसे सरल होती है| इन्हे प्रसन्न करने के लिए खोआ, मिठाई आदि की जरुरत नहीं होती| शिव जी को प्रसन्न करने के लिए मुफ्त में मिलने वाले बेलपत्र, धतूरा और एक लौटा जल ही काफी है| दरअसल यह तीनो चीजें भगवान शिव को बेहद प्रिय हैं| इसीलिए केवल इन तीनों चीजों के चढ़ाने से ही भोलेनाथ खुश हो जाते हैं|
शिवमहापुराण के अनुसार जब देवताओं और असुरों ने अमृत की प्राप्ति के लिए सागर का मंथन किया था तो मंथन के दौरान सागर में से विष निकलने लगा| तब भगवान शिव ने सागर मंथन से उत्पन्न हालाहल विष को पीकर सृष्टि को तबाह होने से बचाया था| इस विष को शिव जी ने गले से नीचे नहीं उतरने दिया था| जिस कारण इनका गला नीला पड़ गया था| इसलिए भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है|
यह विष शरीर में न जाने की वजह से भगवान शिव के मस्तिष्क पर चढ़ गया और भोलेनाथ अचेत हो गए| देवी भाग्वत् पुराण में बताया गया है की इस स्तिथि में आदि शक्ति प्रकट हुई और भगवान शिव का उपचार करने के लिए जड़ी बूटियों और जल से शिव जी का उपचार करने के लिए कहा|
आदि शक्ति के कहे अनुसार देवताओं ने भगवान शिव के सिर से हालाहल की गर्मी को दूर करने के लिए उनके सिर पर धतूरा, भांग रखा और निरंतर जलाभिषेक करें| इससे भगवान शिव के मस्तिष्क से विष का असर दूर हो गया| उस समय से ही भगवान शिव को धतूरा, भांग और जल चढ़ाया जाने लगा|
आयुर्वेद में भी भांग और धतूरा को औषधि कहा गया है| शास्त्रों में तो बेल के तीन पत्तों को रज, सत्व और तमोगुण का प्रतीक माना गया है| बेलपत्र को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी माना जाता है| इसलिए भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र का प्रयोग किया जाता है|