रामायण में श्री राम, लक्ष्मण एवं सीता को चौदह वर्षों का वनवास भोगना पड़ा था और इसका कारण राम की सौतेली माता कैकयी को माना जाता है| लेकिन आखिर ऐसा क्या कारण था की महाराजा दशरथ को देवी कैकई की अनुचित मांग माननी पड़ी थी|
आइये जानते है उस कथा के बारे में जिसकी वजह से भगवान् राम को वनवास जाना पड़ा और महाराज दशरथ की उस मजबूरी के पीछे के रहष्य के बारे में जिसकी वजह से उन्होंने देवी कैकई को दो वर देने का वचन दिया था| और उन्ही दो वचनों के रूप में उन्हें अपने प्राणों से प्रिये पुत्र राम को वनवास जाने का आदेश देना पड़ा|
देवी कैकयी महाराजा दशरथ की सबसे छोटी रानी थी और उन्हें सबसे प्रिय भी थी| दरअसल बहुत समय पहले की बात है जब महाराजा दशरथ देव दानव युद्ध में देवताओं की सहायता करने के उद्देश्य से रणभूमि की और जा रहे थे तो देवी कैकयी ने भी साथ चलने का आग्रह किया| परन्तु महाराजा दशरथ ने ये कह कर मना कर दिया की युद्ध क्षेत्र में स्त्रियों का क्या काम स्त्रियाँ घर में अच्छी लगती हैं उनके कोमल हाथों में हथियार अच्छे नहीं लगते|
देवी कैकयी उनकी बातें सुन कर बड़ी आहत हुई और भेष बदलकर महाराजा दशरथ के सारथि के रूप में उनके साथ रणभूमि में चली गयी|
देव दानव युद्ध में दोनों पक्षों में से कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था और दोनों पक्षों की बराबर क्षति हो रही थी| वहीँ दूसरी तरफ देवताओं की ओर से महाराजा दशरथ ने दानवों के नाक में दम कर रखा था और दानवों का संहार करते जा रहे थे|
दानवों को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था| तभी एक दानव ने उनके रथ पर प्रहार किया| उस दानव का निशाना अचूक था और परिणाम स्वरुप उनके रथ का धूरा टूट गया जब देवी कैकयी ने ये देखा तो उन्होंने फ़ौरन अपने हाथ की छोटी ऊँगली को रथ के धुरे में फंसा दिया|
महाराजा दशरथ को युद्ध की समाप्ति पर इस बात का पता चला तो उनकी प्रसन्नता की सीमा न रही की जिस महारानी को उन्होंने स्त्री होने की वजह से रणभूमि ले जाने से मना कर दिया था उन्होंने ही अपनी जान की परवाह ना करते हुए उनके प्राणों की रक्षा की है|
प्रसन्न हो कर महाराजा दशरथ ने देवी कैकयी से दो वर मांगने को कहा| इसपर देवी कैकयी ने कहा की उचित समय आने पर मैं आपसे अपने दोनों वर सही समय आने पर मांग लूंगी| महाराजा दशरथ ने ख़ुशी ख़ुशी उनकी बात मान ली और वचन दिया की वो उनकी दो मांगें पूरी करने को बाध्य हैं चाहे वो कुछ भी हों|
धीरे धीरे समय बीतता गया और महाराजा दशरथ के घर 4 पुत्रों का जन्म हुआ देवी कौशल्या से राम, देवी सुमित्रा से लक्ष्मण एवं देवी कैकयी से भरत और शत्रुधन|
जब चारों राजकुमारों ने अपनी पढाई पूरी कर ली तो महाराजा ने अपने उत्तराधिकारी का राज्याभिषेक करने की घोषणा कर दी| नियमानुसार श्री राम को ही उत्तराधिकारी बनाया जाना था परन्तु देवी कैकयी की मुंहलगी दासी मंथरा ने देवी कैकयी को भड़का दिया की राम का राज्याभिषेक होते ही कैकयी और उनके पुत्रों कि हालत सेवकों जैसी हो जायेगी|
अतः उन्हें अपने दोनों वर के रूप में राम का चौदह वर्षों का वनवास और अपने पुत्र भरत का राज्याभिषेक मांग लेना चाहिए| देवी कैकयी मंथरा की बातों में आ गयी और महाराजा को वचनबद्ध होने की वजह से उनकी दोनों मांगे माननी पड़ी|