हिरण्यकश्यप भगवान् विष्णु को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता था| उसने अपने राज्य में ये घोषणा करा रखी थी की विष्णु की पूजा करने वाला या फिर उसका नाम लेने वाले को कठोर दंड दिया जाएगा|
हिरन्यकश्यप के बड़े भाई हिरण्याक्ष का वध भगवान् विष्णु ने वराह अवतार लेकर किया था इसी वजह से हिरन्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता था| असुर होने की वजह से उसकी देवताओं से कभी नहीं बनती थी और भगवान् विष्णु देवताओं के संरक्षक थे इसी वजह से उसने देवताओं की अराधना पर भी रोक लगा रखी थी|
हिरण्यकश्यप जितना ही भगवान् विष्णु से चिढ़ता था उतना ही उसके पुत्र का भगवान् विष्णु पर अटूट विश्वास था| हिरण्यकश्यप का एक ही पुत्र था प्रहलाद और वो भी अपने पिता की मर्जी के खिलाफ जा कर भगवान् विष्णु की आराधना मी लिप्त था| जब हिरण्यकश्यप को इस बारे में पता चला तो उसने प्रहलाद को समझाने की बहुत कोशिश की वह विष्णु की आराधना करना छोड़ दे|
परन्तु प्रहलाद नहीं माना उसने कहा की जब तक मेरे शरीर में प्राण है तब तक मैं अपने आराध्य को पूजना बंद नहीं करूँगा| उसके इस उत्तर से हिरण्यकश्यप को बड़ा क्रोध आया और उसने उसे दो दिनों का वक़्त देते हुए कहा की दो दिन बाद जब मैं तुमसे मिलने आऊंगा तब अगर तुम विष्णु का नाम लेते पाए जाओगे तो तुम्हारा अंत निश्चित है|
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को जब ये बात पता चली तो उसने हिरण्यकश्यप से कहा की भाई मैं तुम्हारे पुत्र को गोद में लेकर जलती हुई चिता पर बैठ जाउंगी| कुछ दिनों पहले ही हिरण्यकश्यप की बहन होलिका और इलोजी का विवाह पूर्णिमा को तय हुआ था इसी वजह से हिरण्यकश्यप ने होलिका का यह आग्रह ठुकरा दिया|
जब होलिका ने देखा की हिरण्यकश्यप उसकी बात नहीं मान रहा है तो उसने कहा की हिरन्यक्ष मेरा भी भाई था| अपने भाई के हत्यारे के भक्त को मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं ये विवाह नहीं करुँगी|
होलिका अग्नि की भक्त थी और उसे अग्नि देव से वर प्राप्त था की उसे अग्नि से कोई हानि नहीं पहुंचेगी| इसी वजह से वो प्रहलाद को गोद में लेकर जलती हुई चीता में बैठना चाहती थी ताकि प्रहलाद अग्नि में जलकर भस्म हो जाए| उस दिन होलिका और इलोजी की शादी भी थी होलिका अपनी शादी वाली दिन ही प्रहलाद को गोद में लेकर जलती हुई चीता पर बैठ गयी|
चीता पर बैठने से प्रहलाद का तो बाल भी बांका न हुआ परन्तु होलिका जल कर भस्म हो गयी| दूसरी और इलोजी जो की होलिका से बहुत प्रेम करता था ख़ुशी ख़ुशी बरात लेकर आ रहा था| जब इलोजी की बरात होलिका के द्वार पर पहुंची तब तक होलिका जल कर राख हो चुकी थी|
जब इलोजी को ये बात पता चली तो वह भी उसी चीता में कूद पड़ा परन्तु उस समय तक अग्नि बुझ चुकी थी| वह ये बात सहन नहीं कर सका और चीता की राख और लकड़ियाँ वहां मौजूद लोगों पर फेंकने लगा उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया था| उसने अपनी बाकी की जिन्दगी उसी हालत में बिताई वो सारी उम्र होलिका की याद में ही जिया| और इस तरह होलिका और इलोजी की मार्मिक प्रेम कहानी का अंत हुआ हिमाचल के लोग आज भी इस कहानी को द्वारा होलिका और इलोजी को याद करते हैं|