राधा कृष्ण के प्रेम से सारी दुनिया अवगत है| राधा कृष्ण को कभी अलग – अलग नहीं माना गया है| यह एक ही हैं अर्थात इनका प्रेम इतना अधिक था कि जैसे दो शरीर और एक रूह हो| आपने राधा जी तथा श्री कृष्ण के प्रेम के अनेक ऐसे प्रसंग सुने होंगे जो उनके प्रेम के बारे में बताते हैं| जैसे श्री कृष्ण का स्वयं राधा जी बनना या कभी राधा जी का मुंह दूध से जल जाता है तो श्री कृष्ण को फफोले आ जाते हैं| आइए जानते हैं ऐसे ही एक प्रसंग के बारे में जो सबूत देता है कि श्री कृष्ण तथा राधा जी के बीच गहरे प्रेम का|
नारद जी विष्णु जी के भक्त थे और श्री कृष्ण विष्णु जी का ही अवतार हैं| इसलिए एक बार नारद जी तीनों लोकों में राधा नाम की स्तुति सुनकर चिंतित हो गए| क्योंकि वे श्री कृष्ण से बहुत प्रेम करते थे| अपनी समस्या का समाधान जानने के लिए वे श्री कृष्ण के पास ही जा पहुंचे| जब नारद जी श्री कृष्ण के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि श्री कृष्ण सिर दर्द से कराह रहे हैं|
नारद जी ने श्री कृष्ण से पूछा कि क्या आपके इस दर्द का कोई उपाय नहीं है? तब श्री कृष्ण ने उत्तर दिया कि यदि मेरा कोई भक्त मुझे अपना चरणोदक पिला दे, तो यह वेदना शांत हो सकती है| श्री कृष्ण ने नारद जी को बताया कि यदि रुक्मिणी उन्हें अपना चरणोदक पिला दें, तो शायद लाभ हो सकता है|
श्री कृष्ण की बात सुनकर नारद जी तुरंत रुक्मणि जी के पास पहंच गए| रुक्मणि जी के पास पहुँच कर उन्होंने श्री कृष्ण का सारा हाल उन्हें बताया और श्री कृष्ण के दर्द का उपाय भी बता दिया| परन्तु रुक्मणि जी बोली नहीं-नहीं, देवऋर्षि, मैं यह पाप नहीं कर सकती| रुक्मणि जी का उत्तर जानकार नारद जी श्री कृष्ण के पास गए और उन्हें रुक्मिणी जी की असहमति व्यक्त कर दी|
तब श्री कृष्ण ने नारद जी को अपना सन्देश लेकर राधा जी के पास जाने के लिए कहा| जब राधा जी को श्री कृष्ण की वेदना के बारे में पता चला तो वह बहुत चिंतित हो गयी और उन्होंने तुरंत एक पात्र में जल लाकर उसमें अपने पैर डुबा दिए और नारद से बोलीं, `देवऋर्षि इसे तत्काल कृष्ण के पास ले जाइए। मैं जानती हूं इससे मुझे घोर नर्क मिलेगा, किंतु अपने प्रियतम के सुख के लिए मैं यह यातना भोगने को तैयार हूं|′
तब देवऋर्षि नारद जी भी समझ गए कि तीनों लोकों में राधा जी के प्रेम की स्तुति क्यों हो रही है| इस तरह राधा जी ने श्री कृष्ण के प्रति अपने अटूट प्रेम का सबूत दिया|