मान्यता अनुसार सतयुग में महाराज रैवतक पृथ्वी सम्राट थे जिनकी एक पुत्री थी राजकुमारी रेवती, जिसे उसके पिता ने हर प्रकार की शिक्षा प्राप्त कराई थी| रेवती के जवान होने पर महाराज ने पृथ्वी पर उसके लिए एक योग्य वर की खोज शुरू कर दी| परन्तु वे रेवती के लिए एक योग्यतम वर ढूंढने में असमर्थ रहें| इसी कारणवश महाराज रैवतक बहुत निराश हो गए|
जब वे वर तलाशने में असमर्थ रहें तब अंत में महाराज रैवतक ने ब्रह्मलोक जाने का निश्चय किया ताकि वे स्वयं ब्रह्माजी से रेवती के वर के बारे में पूछ सकें| ऐसा फैसला लेकर महाराज रैवतक अपनी पुत्री रेवती को लेकर ब्रह्मलोक को प्रस्थान कर गए|
ब्रह्मलोक में उस समय वेदों का गान चल रहा था| इसलिए वह वहां कुछ समय के लिए रुक गए और समय बीतता गया| वेदों का पाठ जब खत्म हुआ तो महाराज रैवतक ने ब्रह्मजी के समक्ष अपनी बात रखीं और सब कुछ विस्तार में बताया| जब ब्रह्मा जी ने महाराज की व्यथा सुनी तो वे मुस्कुराने लगें और बोलें आप पृथ्वी पर वापिस लौट जाइए, वहां पर श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम आपकी पुत्री रेवती के लिए योग्य पति साबित होंगे|
रेवती के लिए योग्य एवं भगवान वासुदेव का स्वरूप बलराम जैसा वर पाकर महाराज रैवतक बेहद प्रसन्न हुए और रेवती को लेकर वापिस भूलोक चले गए| परन्तु पृथ्वी पर पहुंच कर वे दोनों आश्चर्यचकित रह गए जब उन्होंने वहां मौजूद मनुष्य तथा अन्य जीव जंतु को बहुत छोटे आकार के दिखें|
कुछ देर वे सोचते रहे कि ये कैसे हुआ? उस समय उन्होंने वहां मौजूद मनुष्यों से वार्तालाप की और उन्हें पता चला की ये द्वापर युग चल रहा है| सतयुग में मानव की ऊंचाई 21 हाथ, त्रेतायुग में 14 हाथ और द्वापरयुग में मनुष्य के शरीर का आकार 7 हाथ है|
यह सब सुनकर वे घबरा गए और श्री कृष्ण के भाई बलराम के पास गए और उन्हें ब्रह्माजी द्वारा बोली गयी बातों की हकीकत बताई| तब बलराम मुस्कुराए और महाराज से बोलें जब तक आप ब्रह्मलोक से लौटे हैं तब तक पृथ्वी पर सतयुग व त्रेता नामक दो युग गुजर गए| इस समय पृथ्वी पर द्वापर युग चल रहा है| इसलिए यहाँ पर आपको छोटे आकार के लोग देखने को मिल रहे है|
महाराज रैवतक चिंतित हो उठे और बलराम से बोलें कि जब तक रेवती आपसे अधिक लम्बी है तब तक आप दोनों का विवाह कैसे संभव होगा? यह सुनते ही बलराम जी ने रेवती को अपने हल के नीचे की ओर दबाया, ऐसा करने से रेवती का कद छोटा हो गया| रेवती के पिता ये दृश्य देख कर बेहद प्रसन्न हुए तथा रेवती और बलराम को विवाह के पवित्र बंधन में बांध कर स्वयं सन्यास चले गए| बाद में बलराम और रेवती ने प्रेम पूर्वक दैनिक दिनचर्या का पालन करते हुए, काफी समय तक पृथ्वी पर मौजूद रहे थे|