रावण भगवान् शिव का अनन्य भक्त था और उसकी भक्ति के कई किस्से प्रचलित हैं| परन्तु क्या आप जानते हैं की एक बार रावण ने पूरा कैलाश पर्वत उठा कर लंका ले जाने की कोशिश भी की थी परन्तु उसका ये प्रयास सफल नहीं हो पाया था| रावण ने भगवान् शिव को लंका ले जाने के लिए लाखों यत्न किये परन्तु हर बार विफल रहा| तब हारकर रावण ने भगवान् शिव की तपस्या आरम्भ कर दी और उसकी घोर तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान् शिव ने उससे मनचाहा वरदान मांगने को कहा|
रावण बड़ा ही चालाक था उसने सही मौका देख कर भगवान् शिव को लंका चलने को कहा इसपर भगवान् शिव मुस्कुराये और रावण के सामने ये शर्त रखी की मैं तुम्हारे बनाये शिवलिंग में स्थापित हो जाता हूँ| तुम इस शिवलिंग तो ले कर चलो परन्तु तुमने जहाँ भी इस शिवलिंग को धरती पर रखा मैं वहीँ विराजमान हो जाऊँगा| रावण अहंकारी तो था ही उसने फ़ौरन से शिव जी की शर्त को स्वीकार कर लिए और शिवलिंग को लेकर लंका की ओर चल पड़ा|
इधर जैसे ही उसने लंका की तरफ चलना शुरू किया वैसे ही सारे देवता भागते हुए भगवान् विष्णु की शरण में पहुंचे और सारी स्थिति बताते हुए रावण को शिवलिंग ले कर लंका जाने से रोकने का निवेदन किया| भगवान् विष्णु सर्व ज्ञाता तो थे ही उन्होंने देवताओं को आश्वस्त किया और वापस जाने को कहा| इसके बाद भगवान् विष्णु ने देवी गंगा को रावण के पेट में समाने को कहा और स्वयं चरवाहे बालक का रूप धारण कर रास्ते में खड़े हो गए|
जैसे ही गंगा रावण के पेट में समाई रावण को बड़ी तेज लघुशंका लगी रावण विचलित होकर इधर उधर देखने लगा क्योंकि भगवान् शिव के शर्त के अनुसार जहाँ भी शिवलिंग धरती पर रख जाता भगवान् शिव वहीँ विराजमान हो जाते| इतने में उसकी नज़र चरवाहे बालक के रूप में खड़े भगवान् विष्णु पर पड़ी उसने उस बालक को पास बुलाकर शिवलिंग पकड़ने को कहा और साथ ही ये हिदायत भी दी की भूल कर भी इस शिवलिंग को जमीन पर न रखे|
शिवलिंग को पकडे रखने के लिए रावण ने उस बालक को स्वर्ण मुद्राएँ देने का भी वादा किया इसपर बालक सहर्ष मान गया और शिवलिंग को पकड़ लिया| रावण शिवलिंग बालक को दे कर निवृत होने लगा परन्तु पेट में गंगा के होने की वजह से रावण की लघुशंका रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी|
और चरवाहे का भेष धारण करने का अभिप्राय पूर्ण हो चूका था इसलिए भगवान् विष्णु ने उसी स्थान पर वो शिवलिंग धरती पर रख दिया और वहां से चले गए| जब देवी गंगा ने देखा की शिवलिंग धरती पर स्थापित हो चूका है तो वो भी रावण के पेट से निकल गयी इस दौरान रावण के मूत्र से एक विशाल कुण्ड का निर्माण हो गया था|
रावण ने देखा की चरवाहे बालक का कही अता पता नहीं है और शिवलिंग धरती पर रखा है ये देख कर रावण बड़ा क्रोधित हुआ और शिवलिंग को उठाने के लिए अपनी सारी शक्ति झोंक दी| परन्तु जैसा भगवान् शिव ने पहले ही कहा था वो वहीँ विराजमान हो गए थे तब गुस्से में आकर रावण ने शिवलिंग पर लात मारी इससे शिवलिंग जमीन में धंस गया| आज उस जगह को झारखंड में देवघर के नाम से जाना जाता है और आज भी रावण का मूत्र कुण्ड वहां मौजूद है| यहाँ श्रावण के महीने में श्रधालुओं की भीड़ जल चढाने के लिए दूर दूर से आती है कई लोग तो पैदल ही कांवड़ ले कर आते हैं|