लंका युद्ध के बाद जब श्री राम अयोध्या लौटे तो उनके राज्याभिषेक के बाद रामराज्य शुरू हुआ| रामराज्य के समय की ऐसी कथाएं प्रचलित हैं जिनके अनुसार राज्य में प्रकृति अनुकूल चलती थी| पिता के जीवित रहते हुए कभी पुत्री की मृत्यु नहीं होती थी| हर तरफ केवल सुख और शांति का माहौल था| इसलिए आज भी अच्छे शासन की तुलना रामराज्य से की जाती है| परन्तु रामराज्य में भगवान श्री राम ने कुछ ऐसे फैसेले किए जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि भगवान श्री राम ऐसे निर्णय ले सकते हैं|
जब श्री राम राजा बने| उसके कुछ समय बाद कुछ ऋषि मुनि राम जी के पास सुंदर नामक असुर की शिकायत लेकर पहुंचे| उस असुर से युद्ध करने के लिए श्री राम ने भरत को भेजना चाहा| परन्तु शत्रुघ्न ने श्री राम से कहा कि भरत भैय्या ने आपकी काफी सेवा कि है मुझे भी आपकी सेवा का अवसर मिलना चाहिए| शत्रुघ्न ने श्री राम की इच्छा को बीच में काटते हुए अपनी इच्छा व्यक्त कर दी|
इसलिए श्री राम ने शत्रुघ्न को सुंदर का वध करने के लिए सेना सहित जाने का आदेश दिया| शत्रुघ्न ने सुंदर का वध कर उस पर विजय प्राप्त कर ली| श्री राम ने शत्रुघ्न को सुंदर की नगरी का राजा भी बना दिया और कहा कि अब से तुम सुंदर की नगरी में ही राज करो| श्री राम की यह बात सुनकर शत्रुघ्न दुखी हो गए| उन्हें अपनी भूल पर पछतावा हुआ कि बड़े भाई के आदेश को काटने की वजह से उन्हें सभी से दूर जाना पड़ रहा है|
सुंदर का वध करने के बाद शत्रुघ्न ने मधुरापुरी राज्य बसाया और 12 साल तक यहां रहने के बाद वापस श्री राम से आकर मिले|
भगवान श्री राम को देवी सीता की पवित्रता पर पूर्ण रूप से भरोसा था| परन्तु उनकी अग्नि परीक्षा के बाद भी एक धोबी ने देवी सीता के चरित्र को लेकर सवाल उठा दिया| इसलिए राजधर्म का पालन करते हुए श्री राम ने देवी सीता को वनवास भेजने का आदेश दे दिया और वह भी उस समय जब देवी सीता गर्भवती थी|
एक दिन यमराज भगवान राम के पास आए और अकेले में मिलने की इच्छा प्रकट की| यमराज ने श्री राम से वचन लिया कि हम दोनों के वार्तालाप के समय जो भी हमारे बीच आएगा आप उसे मृत्यु दंड देंगें| भगवान श्री राम ने यमराज की बात मान ली और द्वार पर लक्ष्मण जी को बैठा दिया|
इसी बीच ऋषि दुर्वासा वहां आ गए और उन्होंने लक्ष्मण जी को श्री राम से मिलने की इच्छा प्रकट की| लक्ष्मण जी के मना करने पर वह क्रोधित हो उठे| मजबूर होकर लक्ष्मण जी को श्री राम के पास जाना पड़ा| यमराज को दिए हुए वचन के कारण श्री राम ने लक्ष्मण जी को मृत्यु दंड दे दिया|
देवी सीता को वन में छोड़ने का आदेश राजा रामचंद्र जी ने लक्ष्मण जी को दिया| परन्तु लक्ष्मण जी यह काम नहीं करना चाहते थे| क्योंकि वह देवी सीता को पवित्र और पतिव्रता मानते थे और देवी सीता के प्रति उनके मन में विशेष आदर भाव भी था| लेकिन श्री राम के आदेश के कारण उन्हें देवी सीता को वन में जाकर छोड़ना पड़ा और उन्हें अकेला छोड़कर वापिस अयोध्या लौटकर आना पड़ा|
अपने पुत्र लवकुश को अपनाने से पहले भगवान श्री राम ने देवी सीता को फिर से अपने सतीत्व का प्रमाण देने के लिए कहा| बार – बार सतीत्व पर उठे सवाल से दुखी होकर देवी सीता ने धरती माता से कहा कि वह उन्हें अपनी गोद में समा लें और देखते ही देखते धरती माता भूमि से प्रकट हुई और देवी सीता उनकी गोद में बैठकर पृथ्वी में समा गयी|