राधा जी और श्री कृष्ण का प्रेम इतना गहरा था कि आज भी सब राधा जी को श्री कृष्ण की आत्मा कहकर पुकारते हैं| राधा जी का जन्म भाद्रपद महीने की शुक्लपक्ष की अष्टमी को हुआ था| जिस दिन राधा जी का जन्म हुआ, उस दिन को राधाष्टमी के नाम से जाना जाता है|
राधा जी के जन्म के पीछे एक बहुत रोचक कथा है| इस कथा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में किया गया|
एक बार राधा जी को किसी कारणवश गोलोक से बाहर जाना पड़ा| उस समय श्री कृष्ण अपनी एक सखी विरजा के साथ विहार कर रहे थे| संयोगवश राधा जी वहां आ गयी| श्री कृष्ण तथा विरजा को साथ में देखकर राधा जी को बहुत क्रोध आया और वह क्रोधित होकर उन दोनों को भला बुरा कहने लगी| यह सब सुनकर लज्जावश विरजा नदी बनकर बहने लगी|
राधा जी ने क्रोध में श्री कृष्ण को भी बहुत कुछ कह दिया| उसी समय श्री कृष्ण के एक सहचर साथी सुदामा ने यह सब सुना| यह सुदामा श्री कृष्ण के प्रिय मित्र सुदामा नहीं बल्कि उनके सहचर साथी थे| श्री कृष्ण के प्रति राधा के क्रोधपूर्ण शब्दों को सुनकर वह आवेश में आ गए और वह श्री कृष्ण का पक्ष लेते हुए राधा जी से आवेशपूर्ण शब्दों में बात करने लगे| श्री कृष्ण के सहचर साथी का ऐसा व्यवहार देखकर राधा जी नाराज हो गयी|
नारजगी में राधा जी ने कृष्ण जी के सहचर साथी सुदामा को राक्षस रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया| क्रोध में भरे हुए सुदामा ने भी राधा जी को श्राप दिया कि उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ेगा| राधा जी के श्राप के कारण सुदामा शंखचूर नाम के दानव हुए जिनका वध भगवान शिव ने किया|
सुदामा के श्राप के कारण राधा जी का धरती पर मनुष्य रूप में जन्म हुआ और उन्हें श्री कृष्ण से विरह का दर्द सहना पड़ा|