भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है जो की गुजरात के सौराष्ट्र में मौजूद है| शिव पुराण के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी| प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था परन्तु चंद्रदेव अपनी 27 पत्नियों में से एक देवी रोहिणी से सबसे अधिक प्रेम करते थे|
बाकी 26 पत्नियों को उनके इस व्यवहार से बड़ा दुःख होता था परन्तु वो कुछ कर नहीं सकती थी| हार कर उन्होंने अपने पिता प्रजापति दक्ष को स्थिति से अवगत कराया| इस बात को जान कर उन्हें भी गहरा आघात लगा और उन्होंने चंद्रदेव से मुलाक़ात कर उन्हें समझाने का मन बना लिया|
प्रजापति दक्ष चंद्रलोक पहुंचे और उन्होंने चंद्रदेव को समझाने की चेष्टा की उन्होंने चंद्रदेव को कहा की आप अच्छे कुल में जन्मे है और आपको अपनी पत्नियों में भेद भाव नहीं करना चाहिए| आपका रोहिणी के प्रति प्रेम सही है लेकिन आप अपनी बाकी पत्नियों को अनदेखा कर रहे हैं वो ठीक नहीं है आपको अपनी सभी पत्नियों को बराबर प्रेम करना चाहिए|
बाकी पत्नियों की अवहेलना करना आपको शोभा नहीं देता मैं आपको आपके भले के लिए ही समझा रहा हूँ| प्रजापति दक्ष ने सोचा की चंद्रदेव उनकी बात अवश्य मानेंगे और भविष्य में अपनी सभी पत्नियों को बराबर प्रेम देंगे|
लेकिन चंद्रदेव पर उनकी बातों का कोई प्रभाव नहीं हुआ दिन ब दिन उनकी रोहिणी के प्रति आसक्ति बढती जाया रही थी| वो अपना ज्यादा वक़्त रोहिणी के साथ ही बिताते थे| वही दूसरी ओर अपने पिता के समझाने के भी कोई प्रभाव नहीं होता देख कर बाकी पत्नियाँ बहुत दुखी रहने लगी|
जब प्रजापति दक्ष को इस बारे में पता चला तो उन्हें बहुत क्रोध आया और वो गुस्से के मारे चंद्रलोक पहुंचे| वहां पहुँच कर उन्होंने अपने आप पर संयम रखते हुए चंद्रदेव को दुबारा से नीतिगत बातों से समझाने का प्रयास किया| परन्तु चंद्रदेव ने घमंड में आकर उनकी अवहेलना कर दी और कठोर शब्दों में उन्हें मना कर दिया| चंद्रदेव के इस व्यवहार से आहात होकर प्रजापति दक्ष ने क्रोध के मारे उन्हें क्षयरोग से पीड़ित होने का श्राप दे दिया|
उनके श्राप देते ही चंद्रदेव की आभा मलिन हो गयी और वो क्षयरोग से पीड़ित हो गए| उनकी इस दशा को जानकार देवराज इंद्र और बाकी देवता ब्रम्हा जी की शरण में पहुंचे और उनसे चंद्रदेव को श्राप से मुक्त करने का उपाय पुछा| तब ब्रम्हा जी ने कहा की चंद्रदेव ने जो अनैतिक कार्य किया है ये उसका ही दुष्परिणाम है| देवताओं के बार बार आग्रह करने पर ब्रम्हा जी ने कहा की इस श्राप से मुक्ति का एक ही उपाय है|
चंद्रदेव को किसी पावन स्थल पर जाकर शिवलिंग की स्थापना करनी होगी तथा उस शिवलिंग का विधिवत पूजन करने के साथ महामृत्युंजय मन्त्र का जाप और कठिन तप करना होगा| चंद्रदेव ने 6 महीनों तक कठोर तप किया उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने प्रकट होकर उनसे पुछा की इस कठोर तप का उद्देश्य क्या है|
तब चंद्रदेव ने उनसे रोगमुक्त करने को कहा तब शिवजी ने कहा की एक पक्ष में तुम्हारा आकर प्रतिदिन क्षीण होगा और दुसरे पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारा आकार निरंतर बढ़ता रहेगा| साथ ही तुमने जो कठोर तप किया है उसके फलस्वरूप आज से मैं इस शिवलिंग में विराजमान हो जाऊँगा और इसे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाएगा|