नवरात्र में सप्तमी तिथि से कन्या पूजन शुरू हो जाता है और इस दौरान कन्याओं को घर बुलाकर उन्हे भोजन कराया जाता है और पूजा की जाती है। कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है। इनका आर्शीवाद लिया जाता है। आइए आज हम आपको कन्या पूजन विधि के बारे में बताते हैं ताकि आपको देवी रूपी कन्याओं का आर्शीवाद मिल सके।
कन्या पूजन विधि
कन्या भोज और पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित करना चाहिए।
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- गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ स्वागत करें और मातृ शक्ति का आवाह्न करें।
- कन्याओं को स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छूकर आशीष लेना चाहिए।
- उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए। इसके बाद मां भगवती का ध्यान करके कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं।
- भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें।
कन्या पूजन में कितनी हो कन्याओं की उम्र?
कन्याओं की उम्र 2 तथा 10 साल तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए। जिसे हनुमानजी का रूप माना जाता है।
जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती, उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है।
उम्र के आधार पर माना गया है माता के स्वरूप
दो वर्ष की कन्या को कुमारी माना जाता है।
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- तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति का स्वरूप मानी जाती है। त्रिमूर्ति यानी दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का स्वरूप।
- चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है।
- पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी कहा जाता है।
- छह वर्ष की कन्या को माता कालिका का रूप माना जाता है।
- सात वर्ष की कन्या को चंडिका माता माना जाता है।
- आठ वर्ष की कन्या को शाम्भवी कहा जाता है।
- नौ वर्ष की कन्या को देवी दुर्गा का स्वरूप माना जाता है।
- दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा कहा जाता है।