नृसिंह जयंती को हिन्दू धर्म में बहुत धूम – धाम से मनाया जाता है| इस दिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नृसिंह का अवतार लिया था| इसीलिए यह दिन नृसिंह की जयंती के रूप में मनाया जाता है| हिन्दू पंचांग के अनुसार नृसिंह जयंती का व्रत वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है| इस दिन व्रत रखने का अपना ही महत्व है| कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से आप सभी जन्मों के पापों से मुक्त हो सकते हैं| पूरी श्रद्धा से भगवान नृसिंह की सेवा-पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और प्रभु के परमधाम को प्राप्त किया जा सकता है|
व्रत कथा
एक बार हिरण्यकशिपु नाम के राक्षस ने ब्रह्मा जी और और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की| भगवान शिव तथा ब्रह्मा जी ने उसकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा| हिरण्यकशिपु ने उनसे अजेय होने का वरदान माँगा| ब्रह्मा जी और और भगवान शिव ने उसकी यह मनोकामना पूर्ण की|
व्रत पाने के बाद हिरण्यकशिपु में अहंकार आ गया कि अब उसे कोई नहीं मार सकता| इसलिए वह अहंकारवश वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा और उन्हें तरह-तरह के यातनाएं और कष्ट देने लगा| इन्ही दिनों में हिरण्यकशिपु को अपनी पत्नी से एक पुत्र की प्राप्ति हुई| जिसका नाम प्रहलाद रखा गया| चाहे प्रहलाद का जन्म राक्षस कुल में हुआ था| परन्तु फिर भी प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति से गहरा लगाव था|
हिरण्यकशिपु को प्रहलाद द्वारा विष्णु जी की भक्ति करना पसंद नहीं था| इसलिए उसने प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने से रोकने के लिए अनेक असफल प्रयास किये| एक बार उसने अपनी बहन होलिका की सहायता से उसे अग्नि में जलाने के प्रयास किया, परन्तु भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद के प्राणों को कोई हानि न होने दी|
एक बार हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को तलवार से मारने का प्रयास किया| तब एक खम्बे में से भगवान नृसिंह प्रकट हुए| उन्होंने हिरण्यकशिपु को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की|
व्रत विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के पश्चात् व्रत के लिए संकल्प लें|
दोपहर में नदी, तालाब अथवा घर पर ही मिट्टी, गोबर, आंवले का फल और तिल लेकर वैदिक मंत्रो का जाप करते हुए स्नान करें| इसके बाद साफ कपड़े पहन कर संध्या तर्पण करें|
पूजा स्थल को गाय के गोबर से लीप कर उस पर अष्ट दल (आठ पंखुड़ियों वाला) कमल बनाएं| कमल के ऊपर पंचरत्न सहित तांबे का कलश स्थापित करें| कलश के ऊपर चावलों से भरा हुआ बर्तन रखें और बर्तन में अपनी इच्छा के अनुसार सोने की लक्ष्मी सहित भगवान नृसिंह की प्रतिमा रखें|
लक्ष्मी और नृसिंह की मूर्तियों को पंचामृत से स्नान करवाएं|
इसके बाद किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा फूल व षोडशोपचार सामग्रियों से विधिपूर्वक भगवान नृसिंह का पूजन करवाएं|
भगवान नृसिंह को चंदन, कपूर, रोली व तुलसीदल भेंट करें तथा धूपदीप दिखाएं। इसके बाद घंटी बजाकर आरती उतारें और नीचे लिखे मंत्र के साथ भोग लगाएं-
नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्।
ददामि ते रमाकांत सर्वपापक्षयं कुरु।।
अब भगवान नृसिंह से सुख की कामना करें| रात में जागरण करें तथा भगवान नृसिंह की कथा सुनें| दूसरे दिन यानी पूर्णिमा पर स्नान करने के बाद फिर से भगवान नृसिंह की पूजा करें| ब्राह्मणों को दान दें उन्हें भोजन करवाएं व दक्षिणा भी दें| इसके बाद पुन: भगवान नृसिंह से मोक्ष की प्रार्थना करें|
अंत में ब्राह्मण को दक्षिणा से संतुष्ट करके विदा करें| इसके बाद स्वयं भोजन करें| धर्म ग्रंथों के अनुसार, जो इस प्रकार नृसिंह चतुर्दशी के पर्व पर भगवान नृसिंह की पूजा करता है, उसके मन की हर कामना पूरी हो जाती है। उसे मोक्ष की प्राप्ति भी होती है|