एक समय की बात है, महात्मा बुद्ध बोद्ध धर्म के प्रचार के लिए विश्व भर में भ्रमण कर रहे थे। बोद्ध धर्म का प्रचार करते हुए वह अपने शिष्यों के साथ एक गाँव में पहुंचे। गाँव में घूमते हुए उन्हें काफी देर हो गयी।
इतना घुमने के बाद महात्मा बुद्ध को प्यास लग गयी। उन्होंने अपने एक शिष्य को गाँव से पानी लेने के लिए भेजा। शिष्य पानी लेने के लिए गाँव के नजदीक एक नदी के पास पहुंचा। गाँव क सभी लोग वहीं से पानी लिया करते थे। परन्तु वहां उसने देखा कि कुछ लोग उसमें नहा रहे हैं तथा कुछ लोग अपने कपड़े धो रहे हैं। इसी कारण नदी का पानी काफी गंदा दिख रहा था।
शिष्य ने मन में सोचा कि वह अपने गुरु को पीने के लिए ऐसा गंदा पानी नही दे सकता। यह सोचकर वह वापिस आ गया। वापिस आकर उसने महात्मा बुद्ध को सारी बात बताई।
महत्मा बुद्ध को बहुत प्यास लगी थी। इसलिए उन्होंने अपने दूसरे शिष्य को पानी लाने के लिए भेजा। कुछ देर बाद वह शिष्य पानी लेकर लौट आया।
यह देखकर महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य से पूछा कि नदी का पानी तो गंदा था। तुम साफ पानी कैसे ले आये? शिष्य ने उत्तर देते हुए बोला कि नदी का पानी बहुत गंदा था। परन्तु मैंने लोगों के जाने के बाद वहां कुछ देर इंतजार किया और कुछ समय में ही मिट्टी नीचे बैठ गयी और साफ पानी ऊपर आ गया।
अपने शिष्य की बुद्धिमानी से महात्मा बुद्ध बहुत प्रसन्न हुए और बाकी शिष्यों को समझाते हुए कहने लगे कि हमारा जीवन भी पानी की तरह है। जब तक हमारे कर्म अच्छे हैं तब तक सब कुछ शुद्ध है। परन्तु जैसे ही हमारे जीवन में दुःख आते हैं, हमें जीवन रूपी पानी गंदा लगने लगता है।
कुछ लोग मुसीबत को देखकर घबरा जाते हैं और वापिस लौट आते हैं। ऐसे लोग जीवन में कभी आगे नही बढ़ पाते। परन्तु जो लोग धैर्य रखते हैं। उनके दुःख पानी में आई गंदगी की तरह स्वयं समाप्त हो जाते हैं। इसलिए दुःख के समय धैर्य रखें। ऐसा करने से दुःख अपने आप समाप्त हो जायेगा।