महाभारत काल का श्रापित योद्धा जो की पृथ्वी के अंत तक भटकेगा

अश्वत्थामा कौरव और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था। इस ने कौरवों की ओर से युद्ध लड़ा था, लेकिन अपनी एक गलती के कारण अश्वत्थामा को ऐसा शाप मिला। जिसके कारण वो दुनिया खत्म होने तक जीवित रहेगा और 3000 साल तक भटकेगा। पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य और गुरुमाता कृपी के घर एक पुत्र का जन्म हुआ पैदा होते ही उस बालक ने देवराज इंद्र के घोड़े उच्चेश्रवा जैसी आवाज निकाली जिसकी वजह से उसका नाम अश्वत्थामा पड़ा|

द्रोणाचार्य से पहले गुरु कृप पांडवों और कौरवों को धनुर्विद्या सिखाते थे| परन्तु अश्वत्थामा का धनुर्विद्या में कोई सानी नहीं था अश्वत्थामा कर्ण, अर्जुन और कृप से भी बड़ा धनुर्धर था|

महाभारत के युद्ध में जब गुरु द्रोणाचार्य पांडवों की सेना का संहार करते जा रहे थे और पांडवों को उनका कोई विकल्प नहीं सूझ रहा था| तब श्री कृष्ण ने खबर फैला दी की अश्वथामा मारा गया गुरु द्रोणाचार्य जानते थे की युधिस्ठिर कभी असत्य नहीं बोलते तो उन्होंने युधिस्ठिर से पूछा की क्या यह सत्य है|

तब युधिस्ठिर ने कहा की हाँ अश्वथामा मारा गया परन्तु नर नहीं गज लेकिन श्री कृष्ण ने तभी शंखनाद कर दिया| शंख की ऊँची आवाज की वजह से द्रोणाचार्य केवल इतना ही सुन पाए की अश्वथामा मारा गया और उन्होंने शोक के मारे अपने हथियार निचे रख दिए|

सही मौका देख कर महाराजा द्रुपद के पुत्र द्रुपदमन ने उनपर तीक्ष्ण तीरों की बौछार कर दी जिससे गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु हो गयी| गुरु द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र अश्वथामा को उत्तर पांचाल का आधा राज्य दिलवाया था|

उन्होंने नारायण अश्त्र चलाने की शिक्षा केवल अश्वथामा को ही दी थी जिसका उपयोग अश्वथामा ने अपने पिता की मृत्यु के बाद पांडवों पर किया था| अश्वथामा के पास अग्नेयस्त्र, वारुनास्त्र, दिव्यास्त्र, पर्जन्यास्त्र, ब्रम्हास्त्र, ब्रम्ह्शिरास्त्र, नारायनस्त्र को चलाने के साथ साथ उनके रहष्यों के बारे में भी पता था| गुरु द्रोणाचार्य ने ब्रम्हास्त्र की शिक्षा केवल अर्जुन तथा अश्वथामा को ही दी थी| महाभारत के युद्ध में दोनों ने ब्रम्हास्त्र का उपयोग किया था परन्तु देवर्षि नारद के आग्रह पर अर्जुन ने तो ब्रम्हास्त्र वापस ले लिया था परन्तु अश्वथामा ने उनकी बात नहीं मानी थी|

अश्वथामा के प्रहार के फलस्वरूप गर्भ में पल रहे पांडवों के वंशज पर हुआ जिसकी रक्षा श्री कृष्ण ने की थी और इस घृणित कार्य के दंडस्वरूप महर्षि व्यास और श्री कृष्ण ने उससे सर पर लगी मणि का त्याग करने को कहा और साथ ही श्राप भी दिया|

तब श्री कृष्ण ने अश्वथामा को जीवित छोड़ने के बदले उससे उसके सर पर लगी मणि मांगी| तब उसने कहा की यह मणि ब्रम्हांड में सबसे मूल्यवान है यह जिसके पास होती है उसे संसार का कोई भी भय नहीं सताता| कहा जाता है की भगवान् श्री कृष्ण ने उसे 3000 वर्ष तक पृथ्वी पर भटकने का श्राप दिया था साथ ही यह भी कहा था की उसके शरीर से निरंतर पीप और रक्त बहता रहेगा साथ ही उससे दुर्गन्ध आती रहेगी|

Previous Article

इन पांचों के सिर काटे थे भगवान शिव ने

Next Article

क्या ब्रह्मा जी ने अपनी ही पुत्री से विवाह किया था? Brahma aur Saraswati ka vivah

Write a Comment

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *