महाभारत के युद्ध के समय श्री कृष्ण अर्जुन के रथ के सारथी थे| युद्ध के समय अर्जुन का बाण जैसे ही कर्ण की तरफ छूटता था, कर्ण का रथ कोसों दूर चला जाता था और जब कर्ण का बाण अर्जुन के रथ की तरफ छूटता था तो अर्जुन का रथ सात कदम पीछे चला जाता था|
यह देखकर श्री कृष्ण कर्ण की तारीफ करते हुए कहने लगे कि यह कर्ण कितना वीर है| इसके बाण हमारे रथ को सात कदम पीछे धकेल देते हैं|
यह सुनकर अर्जुन को बुरा लगा कि श्री कृष्ण उनके स्थान पर कर्ण की तारीफ कर रहे हैं| जब अर्जुन से रहा न गया तो वह श्री कृष्ण से पूछ बैठे कि हे वासुदेव! यह पक्षपात क्यों? मेरे पराक्रम की आप प्रशंसा नहीं करते एवं मात्र सात कदम पीछे धकेल देने वाले कर्ण को बार – बार वाहवाही देते हैं|
अर्जुन की बात का जवाब देते हुए श्री कृष्ण ने कहा कि अर्जुन, तुम्हारे रथ पर महावीर हनुमान एवं स्वयं मैं वासुदेव कृष्ण विराजमान हूँ| यदि हम दोनों न होते तो तुम्हारे रथ का अस्तित्व भी शेष न बचता| हमारे विराजमान होने के बावजूद भी कर्ण ने रथ को सात कदम पीछे धकेल दिया| यह कर्ण के महाबली होने का परिचायक है|
प्रत्येक दिन जब अर्जुन और श्री कृष्ण युद्ध से लौटते थे| तो सारथि धर्म के अनुसार श्री कृष्ण पहले उतरते थे और फिर अर्जुन को उतारते थे| परन्तु अंतिम दिन श्री कृष्ण ने अर्जुन को पहले उतरने के लिए कहा| उन्होंने कहा कि अर्जुन! तुम पहले रथ से उतरो और थोड़ी दूरी तक जाओ।
जब अर्जुन रथ से उतर कर कुछ दूर चले गए| तब श्री कृष्ण रथ से उतरे| उनके रथ से उतरने के बाद घोड़े सहित रथ भस्म हो गया| यह देख अर्जुन बहुत आश्चर्यचकित हुए|
श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया – पार्थ! तुम्हारा रथ तो बहुत पहले ही भस्म हो चुका था| भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य और कर्ण के दिव्यास्त्रों से यह कभी का नष्ट हो चुका था| मेरे संकल्प ने इसे युद्ध समापन तक जीवित रखा था|
अपनी जीत पर गर्व महसूस करने वाले अर्जुन को समझ आया कि सब कुछ भगवान का ही किया हुआ है|