इस सत्य से हम सभी भली भांति अवगत हैं कि श्री राम भगवान विष्णु के अवतार थे। परन्तु क्या आप जानते हैं कि विष्णु जी ने अयोध्या में ही अवतार क्यों लिया? आइए जानते हैं भगवान विष्णु का अयोध्या में जन्म लेने के पीछे क्या कथा जुड़ी है।
पौराणिक कथायों के अनुसार स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा से मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई है। मनु ने अपने जीवन काल में बहुत समय तक राज किया। समय के साथ साथ उन्हें बुढ़ापा भी आ गया।
बुढ़ापे की अवस्था में मनु को यह सोचकर बहुत दुःख हुआ कि उन्होंने अपना सारा जीवन श्रीहरि की भक्ति के बिना ही व्यतीत कर दिया। अपनी गलती को सुधारने के लिए वह और उनकी पत्नी अपना राज पाट अपने पुत्र को देकर वन में चले गए।
घर त्यागने के बाद मनु अपनी पत्नी के साथ तीर्थों में श्रेष्ठ नैमिषारण्य धाम पहुंचे। यहां पहुँच कर दोनों पति पत्नी ने कई हजार सालों तक विष्णु जी को प्रसन्न करने के लिए उनकी तपस्या की।
अपनी गलती का प्रयाश्चित करने के लिए उन्होंने भगवान विष्णु जी की कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया। इसलिए उन्होंने फल मूल का त्याग कर दिया तथा केवल जल के सहारे ही जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें इस तरह तपस्या करते हुए छह हजार साल बीत गए।
उनकी इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने मनु और शतरूपा को वर मांगने के लिए कहा। दोनों ने वरदान में भगवान विष्णु जैसा ही पुत्र माँगा।
यह सुनकर विष्णु जी ने कहा कि उनकी यह इच्छा पूरी नही हो सकती। क्योंकि इस पूरे संसार में उनके जैसा कोई नही है। यह सुनकर मनु और उनकी पत्नी निराश हो गए। उन्हें निराश देखकर विष्णु जी ने कहा कि कुछ समय बाद मनु राजा दशरथ के रूप में अयोध्या में जन्म लेंगे। तब भगवान विष्णु उनके पुत्र बनकर उनकी इच्छा पूरी करेंगे।
मनु और शतरुपा को दिए वरदान को पूरा करने के लिए ही भगवान विष्णु ने अयोध्या में राम के अवतार में जन्म लिया।