भगवद गीता के कुछ अनमोल वचन

क्रोध से भ्रम पैदा होता है। भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।

जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है।

अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।

आत्म-ज्ञान की तलवार से अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को काटकर अलग कर दो। अनुशाषित रहो। उठो।

मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है। जैसा वह विश्वास करता है वैसा ही वह बन जाता है।

नर्क के तीन द्वार हैं- वासना, क्रोध और लालच।

मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।

व्यक्ति जो चाहे बन सकता है, यदी वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे।

हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है।

जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो।

अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा करता है।

सभी अच्छे काम छोड़ कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ। मैं तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। शोक मत करो।

मैं उन्हें ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं और जो मुझसे प्रेम करते हैं।

मैं सभी प्राणियों को सामान रूप से देखता हूँ। न कोई मुझे कम प्रिय है न अधिक। लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूँ।

प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करता।

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भगवद गीता (कर्मयोग - तीसरा अध्याय : श्लोक 1 - 43)

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