रामायण के अनुसार भगवान श्री राम से जुडी कई ऐसी कथाएं है जिनके बारे में आज भी बहुत ही कम लोगों को पता है| शायद ही आपको पता हो की लक्ष्मण शेषनाग के अवतार थे और उनकी मृत्यु कैसे हुई थी| दरअसल भगवान् राम अपने वनवास की अवधी पूरी करके और लंका पर विजय प्राप्त कर रावण की मृत्यु के बाद वापस अयोध्या पहुंचे|
उस समय अयोध्या का राज काज उनके भाई भरत के हाथों में था परन्तु जब श्री राम वहां पहुंचे तो वहां का नज़ारा देख कर अचंभित रह गए| उन्होंने देखा की भरत सिंघासन के पास नीचे बैठे हुए थे और सिंघासन पर श्री राम के खडाऊ रखे हुए थे|
जब भरत ने श्री राम को देखा तो सारा राज्यभार उनको सौंप दिया और कहा की भैया ये सिंघासन सिर्फ आपका है| और जब आप वनवास में थे तो आपके खडाऊ को सिंघासन पर रख कर आपके प्रतिनीधि के रूप में ये 14 वर्ष व्यतीत किये हैं| अब आप मुझे इस झंझट से मुक्त करें और सारा राज्यभार संभालें| श्री राम ने भरत का निवेदन मान लिया और अयोध्या के राजा के रूप में सारी जिम्मेवारी अपने सर पर ले ली|
एक दिन की बात है यमराज किसी आवश्यक विचार विमर्श के लिए भगवान राम के पास पहुंचे| यमराज पहले भी कई बार भगवान् राम से विचार विमर्श करने उनके पास आ चुके थे| यमराज जब पहली बार आये थे तभी उन्होंने श्री राम से ये वचन ले लिया था की हमारी वार्ता के बीच अगर कोई भी आ जाता है तो राम उसे मृत्युदंड देंगे| अतः हर बार की तरह इस बार भी श्री राम ने लक्ष्मण को द्वार पर खड़ा कर दिया ताकि कोई भी अन्दर न आ सके| जब दोनों के बीच गहन चर्चा चल रही थी तभी महर्षि दुर्वाषा वहां आ गए और श्री राम से मिलने की इच्छा प्रकट की|
लक्ष्मण चुकी द्वार पर स्वयं मौजूद थी अतः उन्होंने महर्षि दुर्वाषा को विनम्रता पूर्वक अन्दर जाने से रोक लिया| लक्ष्मण ने महर्षि दुर्वाषा को कहा की श्री राम किसी अत्यंत ही आवश्यक कार्य में संलग्न है इसलिए आप कुछ देर प्रतीक्षा कर लें| ये सुनते ही महर्षि दुर्वाषा के क्रोध की सीमा न रही और उन्होंने कहा की या तो तुम जाकर राम से कहो की वो मुझसे मिले नहीं तो मैं अपने क्रोध की अग्नि से सारी अयोध्या को जला कर ख़ाक कर दूंगा|
तब लक्ष्मण ने सोचा की पूरे राज्य को ख़ाक होने से बचाने के लिए अगर अपना बलिदान भी देना पड़े तो कम है और वो राम के पास महर्षि दुर्वाषा का सन्देश लेकर गए| श्री राम बिना कोई विलम्ब किये महर्षि दुर्वाषा के पास पहुंचे और उनका स्वागत किया उनके इस आचरण से महर्षि बड़े प्रसन्न हुए|
महर्षि को प्रसन्नचित देख कर श्री राम ने अपने वचन के बारे में बताया और साथ ही उनसे लक्ष्मण को मृत्युदंड से बचाने का उपाय पुछा| इसपर महर्षि दुर्वाषा ने श्री राम को कहा की अपने किसी प्रिय व्यक्ति को अपने से दूर कर देना या उसका त्याग कर देना मृत्युदंड के बराबर ही है| ये सुनकर लक्ष्मण ने कहा की आपसे दूर होने से अच्छा है की मैं आपके वचन के अनुसार मृत्यु को गले लगा लूं| और ऐसा बोल कर लक्ष्मण ने श्री राम का आशीर्वाद लिया और जल समाधि ले ली|