भगवान विष्णु ने ना केवल कुबेर, जो कि धन के देव हैं, से कर्ज़ लिया अपितु वे आज तक इस कर्ज़ को चूका रहे हैं| आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी :-
यह कहानी ऋषि भृगु से जुडी हुई है| वे त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) में से सबसे श्रेष्ठ भगवान को चुनने में लग गए|
जब भृगु अपने पिता ब्रह्म देव के पास पहुंचे तो न कोई अभिवादन किया और न ही कोई आदर-सत्कार दिखाया। भृगुजी की इस स्वभाव को देखकर ब्रह्माजी क्रोधित हो उठे और शाप देने लगे तभी उन्हें ये ख्याल आया कि ये तो मेरा ही पुत्र है और उन्होंने अपने क्रोध को शांत कर लिया| भृगु जी से यह छिप न सका और उन्होंने ब्रह्माजी से प्रस्थान की आज्ञा ली।
इसके बाद भृगु ऋषि कैलाश पर्वत भगवान शिव के पास गए। भृगु ऋषि को आता देख शिव ने अपने स्थान से उठकर उनका आदर दिया। लेकिन भृगु तो कुछ सोचकर आए थे, इसलिए वे भला-बुरा कहकर शिव का अपमान करने लगे।
इसपर महादेव शिव काफी क्रोधित हो उठे और उन्होंने त्रिशूल उठा लिया। लेकिन देवी पार्वती ने उन्हें रोक लिया और ब्रह्माजी के पुत्र होने के नाते उन्हें क्षमा करने को कहा|
फिर ऋषि वैकुण्ठ भगवान विष्णु के पास गए| भगवान विष्णु वहां माँ लक्ष्मी के साथ आराम कर रहे थे, तभी ऋषि भृगु ने उनकी छाती पर अपने पैर से प्रहार किया| वे क्रोधित ना होकर उनसे क्षमा मांगने लगे और कहा मैं आपको देख न पाया। इस प्रकार उन्होंने विष्णु जी को श्रेष्ठ भगवन चुन तो लिया पर लक्ष्मी जी यह देख क्रोधित हो गयीं|
लक्ष्मी जी भगवान विष्णु को छोड़ धरती पर आ गयी और विष्णु जी उन्हें नहीं ढूंढ पाए| फिर भगवन विष्णु ने श्रीनिवास के रूप में अवतार लिया| वे वाकुला देवी के पुत्र के रूप में धरती पर आए| वाकुला देवी और कोई नहीं बल्कि यशोधा माता थी जिन्होंने कृष्ण से कहा था कि वे उनके विवाह का हिस्सा नहीं बन पाई थी तब कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि वे वाकुला देवी के रूप में मेरी माता बनेंगी|
लक्ष्मी जी ने भी तब पद्मावती के रूप में धरती पर जन्म लिया| एक बार श्रीनिवास जंगली हाथी के शिकार पर निकला वहां पर राजकुमारी पद्मावती भी मौजूद थीं| राजकुमारी और उनकी दासियाँ हाथी को देख के डर गयी| तभी श्रीनिवास ने उस हाथी को काबू कर लिया|
श्रीनिवास की नज़र पदमाती पर आई और उनसे मोहित होकर उन्होंने अपनी माता वाकुला देवी से कह कर विवाह करने का प्रस्ताव पद्मावती के पिता को भेजा| दोनों के विवाह के लिए सभी देवताओं को बुलाया गया तब भगवान श्रीनिवास ने कुबेर से विवाह के लिए कर्ज़ लिया जोकि कलयुग के अंत तक ब्याज सहित लौटाने का वादा किया|
विवाह के पश्चात लक्ष्मी जी ने ऋषि भृगु को भी माफ़ कर दिया था|
तो जब भी कोई बालाजी मंदिर में कुछ चढ़ाता है तो वह एक तरह से भगवान विष्णु के कर्ज़ को चुकाने में मदद कर रहा है जिसके बदले वह बालाजी से कभी खाली हाथ नहीं जाता|