महाभारत के युद्ध में कर्ण को कौरवों की सेना का सेनापति बनाया गया| काफी समय तक कर्ण इस बात से अनजान थे कि पांडव उनके ही भाई है| युद्ध के दौरान कुंती कर्ण के पास गयी और कर्ण के सामने उनके जन्म का सारा रहस्य खोल दिया| वह कर्ण को कहने लगी कि पांडव उसके दुश्मन नहीं बल्कि भाई हैं|
परन्तु यह रहस्य जानने के बाद भी कर्ण ने कौरवों की ओर से युद्ध करने का निर्णय नहीं बदला| कर्ण ने अपनी माँ कुंती को वचन दिया कि वह अर्जुन को छोड़कर अन्य पांडव को नहीं मारेगा| कर्ण का यह वचन दर्शाता है कि कर्ण अर्जुन को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता था |
आइए जानते हैं ऐसे कौन से कारण थे जिनकी वजह से कर्ण अर्जुन को मारना चाहता था|
कर्ण को पालने वाले अधिरथ थे| वह कर्ण को शिक्षा प्राप्ति के लिए गुरू द्रोणाचार्य के पास ले गए थे| द्रोणाचार्य केवल क्षत्रिय को ही शिक्षा देते थे| इसलिए उन्होंने कर्ण को शिक्षा देने से मना कर दिया| द्रौणाचार्य का सबसे प्रिय शिष्य अर्जुन था और वह अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाना चाहते थे|
इसलिए कर्ण अर्जुन को पराजित करके गुरु द्रौणाचार्य को साबित करना चाहते थे कि वह सूतपुत्र होकर भी अर्जुन से बेहतर क्षत्रिय है| कर्ण की यह महत्वाकांक्षा इनके बीच दुश्मनी की एक बड़ी वजह थी|
जब कौरवों और पांडवों की शिक्षा समाप्त हुई तो दीक्षांत समारोह का आयोजन किया गया| इस आयोजन में सबको अपनी क्षमता और योग्यता का प्रदर्शन करना था| इसी दौरान कर्ण भी वहां पहुंच गया और अर्जुन को मुकाबले की चुनौती दी| कर्ण की चुनौती से पांडव क्रोधित हो गए और सूतपुत्र कहकर कर्ण का अपमान करने लगे और कर्ण को प्रतियोगिता में शामिल होने से रोक दिया गया| इस बात का फायदा उठा कर दुर्योधन ने कर्ण को अंगराज बनाकर अपना मित्र बना लिया|
महाभारत में एक प्रसंग मिलता है कि कर्ण भी द्रौपदी से विवाह करना चाहता था| इसी उद्देश्य से कर्ण द्रोपदी के स्वयंवर में पहुंचा| परन्तु यहां भी कर्ण को सूतपुत्र होने के कारण स्वयंवर में भाग लेने से रोक दिया गया और ब्रह्मण वेष में अर्जुन ने स्वयंवर में भाग लेकर द्रौपदी से विवाह रचाया|
इसी का बदला लेने के लिए कर्ण ने द्युत क्रीड़ा में द्रौपदी को दांव पर लगाने की मांग की थी और बाजी हार जाने के बाद सभा में द्रौपदी का अपमान किया था| द्रोपदी के अपमान के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ और इससे कर्ण और अर्जुन की शत्रुता और बढ़ गयी|
जब पांडव अपना वनवास भुक्त रहे थे तब कर्ण और दुर्योधन पांडवों को परेशान करने के लिए वन में तंबू लगाकर रहने लगे| इसी दौरान दुर्योधन ने एक एक गंधर्व कन्या के साथ छेड़छाड़ की| जिस कारण गंधर्वों ने दुर्योधन को बंदी बना लिया| ऐसे में अर्जुन और भीम ने आगे आकर दुर्योधन की सहायता की और उसे मुक्त करवाया|
कर्ण ने मदिरा का सेवन किया हुआ था| इसलिए वह दुर्योधन की सहायता नहीं कर पाया| जिस कारण कर्ण को दुर्योधन से अपमान सहना पड़ा| अर्जुन और भीम की वजह से अपमान के कारण कर्ण उनसे बदला लेना चाहता था|
अज्ञातवास समाप्त होने के समय जब विराट का युद्ध हुआ था| उस समय अर्जुन ने अकेले ही पूरी कौरव सेना को परास्त कर दिया था| इस घटना के बाद द्रोणाचार्य ने कई बार कर्ण का उपहास किया और यह साबित करने का प्रयास किया कि अर्जुन कर्ण से श्रेष्ठ है|