रामायण में एक प्रसंग आता है कि रावण और श्री राम के युद्ध के दौरान अहिरावन नाम का एक दानव भगवान श्री राम तथा लक्ष्मण जी को उठा कर पाताल लोक ले गया| अहिरावन माँ भवानी का बहुत बड़ा भक्त था| अहिरावन रावण का ही मायावी भाई था तथा रावण ने ही उसे श्री राम तथा लक्ष्मण जी का अपहरण करने के लिए कहा था| अहिरावन ने अपनी माया के दम पर श्री राम की पूरी सेना को निद्रा में डाल दिया और श्री राम तथा लक्ष्मण जी को अपने साथ ले गया|
कुछ समय बाद जब अहिरावन की माया का प्रभाव समाप्त हो गया तो सब अपनी निद्रा से उठ खड़े हुए| भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी को वहां न देखकर हनुमान जी बहुत चिंतित हुए| कोई समझ नहीं पा रहा था कि आखिर वहां क्या हुआ| तब विभिषण को समझ आया कि यह माया अहिरावन ने रची है|
यह बात जब हनुमान जी को पता चली| वह श्री राम और लक्ष्मण जी की रक्षा के लिए पातल लोक पहुँच गए| पातल लोक में हनुमान जी का सामना उनके पुत्र मकरध्वज के साथ हुआ| वहां हनुमान जी को श्री राम तथा लक्ष्मण जी की रक्षा के लिए अपने ही पुत्र मकरध्वज के साथ युद्ध करना पड़ा| मकरध्वज को पराजित करने के पश्चात् हनुमान जी उस स्थान पर पहुंचे जहां अहिरावन ने श्री राम तथा लक्ष्मण को बंदी बनाया हुआ था|
अहिरावन ने माँ भिवानी के पास पांच दिशाओं में पांच दीपक जलाये हुए थे| इन पांचो दीपकों को एक साथ बुझाने पर ही अहिरावन का वध हो सकता था| इसलिए इन पांच दीपकों को बुझाने के लिए हनुमान जी को पांच मुख धारण करने पड़े|
उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। यह पांच मुख धर कर हनुमान जी ने पांच दीपक बुझाये तथा अहिरावन का वध करके भगवान श्री राम तथा लक्ष्मण जी को मुक्त करवाया|
हनुमान जी के पांच मुखों से एक और कथा जुड़ी हुई है| एक बार मरियल नाम के एक दानव ने भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र चुरा लिया| यह बात जब हनुमान जी को ज्ञात हुई तो उन्होंने प्रण किया कि वह मरियल से चक्र वापिस लेकर भगवान विष्णु को वापिस सौंप देंगे|
मरियल दानव इच्छानुसार रूप बदलने में माहिर था| इसलिए विष्णु जी ने हनुमान जी को इच्छानुसार वायुगमन की शक्ति के साथ गरुड़-मुख, भय उत्पन्न करने वाला नरसिंह-मुख, ज्ञान प्राप्त करने के लिए हयग्रीव मुख तथा सुख व समृद्धि के लिए वराह मुख का वरदान दिया| पार्वती जी ने उन्हें कमल पुष्प एवं यम-धर्मराज ने उन्हें पाश नामक अस्त्र प्रदान किया| इन्ही शक्तियों तथा वरदानो की वजह से हनुमान जी ने मरियल पर विजय प्राप्त की तथा विष्णु जी का सुदर्शन चक्र उन्हें वापिस लौटाया| तभी से हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप को भी पूजा जाने लगा|