रामायण में जिन्होंने श्री राम की लंका युद्ध में सहायता की थी| उनमें से एक जामवंत भी थे| जामवंत रामायण के उन पात्रों में से एक हैं जिनकी उपस्थिति महाभारत काल में भी पायी गयी है| रामायण काल में जहां जामवंत ने विष्णु जी के अवतार श्री राम की रावण के वध के लिए सहायता की वहीं महाभारत में उन्होंने विष्णु जी के अवतार श्री कृष्ण के साथ युद्ध किया|
आइए जानते हैं कि क्यों जामवंत ने श्री कृष्ण के साथ युद्ध किया|
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार सत्राजीत के पास स्यमंतक नाम की मणि थी| यह मणि सत्राजीत को सूर्यदेव ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर दी थी| सत्राजीत उस मणि को अपने मस्तक पर धारण करके रखते थे| एक दिन सत्राजीत श्री कृष्ण को मिलने के लिए गए|
उस समय श्री कृष्ण अपने साथियों के साथ चौसर खेल रहे थे| सत्राजीत के पास मणि देखकर श्री कृष्ण ने कहा कि तुम्हारे पास जो मणि है वह एक अलौकिक मणि है| तुम अपनी यह अलौकिक मणि हमारे मित्र, राजा उग्रसेन को दे दो|
श्री कृष्ण की यह बात सुनकर सत्राजीत बिना कुछ बोले ही वहां से उठ कर चले गए| इसके बाद सत्राजीत ने उस मणि को अपने घर के मंदिर में स्थापित कर दिया| यह मणि बहुत अदभुत थी| यह मणि जिस स्थान पर होती थी वहां से सभी कष्ट दूर हो जाते थे तथा यह मणि दिन में आठ बार सोना देती थी|
सत्राजित का एक भाई था| जिसका नाम था प्रसेनजित| एक दिन प्रसेनजित मणि को पहन आखेट की ओर चला गया| जब वह वन से गुजर रहा तो एक सिंह ने उस पर हमला कर दिया जिसमें वह मारा गया| प्रसेनजित को मारकर सिंह उससे मणि भी लेकर चला गया| जामवंत भी उसी वन में एक गुफा में रहते थे|
उन्होंने उस सिंह को मारकर वह मणि प्राप्त कर ली और अपनी गुफा में चले गए| जामवंत ने वह मणि अपने बालक को दी जो उसे खिलौना समझ बैठा और उसके साथ खेलने लग गया|
जब सत्राजीत का भाई प्रसेनजित वापिस लौट कर नहीं आया तो उसे श्री कृष्ण पर संदेह हुआ कि उन्होंने मणि के लिए उसके भाई को मार दिया है| कृष्ण जी पर चोरी के सन्देह की बात पूरे द्वारिकापुरी में फैल गई| अपने उपर लगे कलंक को धोने के लिए वे नगर के प्रमुख यादवों को साथ ले कर रथ पर सवार हो स्यमन्तक मणि की खोज में निकल पड़े|
वन में पहुँच कर श्री कृष्ण ने देखा कि किसी जानवर के हमले के कारण प्रसेनजित की मृत्यु हो गयी है| प्रसेनजित के मृत शरीर के पास उन्होंने सिंह के पंजों के निशान देखे और उन चिन्हों का पीछा करते हुए वह सिंह के मृत शरीर तक पहुंचे| सिंह के पास रीछ के कदमों के निशान थे जो कि एक गुफा की तरफ जा रहे थे|
गुफा के पास पहुंच कर श्री कृष्ण ने यादवों को बाहर ही रुकने के लिए कहा और स्वयं गुफा के अंदर चले गए| गुफा के अंदर पहुंच कर श्री कृष्ण ने रीछ के बालक को मणि के साथ खेलते हुए देखा| श्री कृष्ण ने उस बालक से वह मणि ले ली जिस कारण वह बालक रोने लग गया| अपने बालक को रोता देखकर जामवंत को बहुत क्रोध आ गया|
वह क्रोधित होकर श्री कृष्ण को मारने के लिये झपटे| जामवंत और श्री कृष्ण के मध्य भयंकर युद्ध होने लगा| जब कृष्ण गुफा से वापस नहीं लौटे तो सारे यादव उन्हें मरा हुआ समझ कर बारह दिन के उपरांत वहाँ से द्वारिकापुरी वापस आ गये| यह युद्ध 28 दिन तक चला|
युद्ध में जब जामवंत की नसें टूट गयी तो वह श्री राम का स्मरण करने लगे| तब श्री कृष्ण ने उन्हें श्री रामचन्द्र के रूप में दर्शन दिए और कहा “हे जामवंत! तुमने मेरे राम अवतार के समय रावण के वध हो जाने के पश्चात मुझसे युद्ध करने की इच्छा व्यक्त की थी और मैंने तुमसे कहा था कि मैं तुम्हारी इच्छा
अपने अगले अवतार में अवश्य पूरी करूँगा| अपना वचन सत्य सिद्ध करने के लिये ही मैंने तुमसे यह युद्ध किया है|” जामवंत ने भगवान श्री कृष्ण की अनेक प्रकार से स्तुति की और अपनी कन्या जामवंती का विवाह उनसे कर दिया।
द्वारिका वापिस पहुँच कर श्री कृष्ण ने सत्राजित को बुलवाकर उसकी मणि उसे वापिस कर दी| सत्राजित अपने द्वारा श्री कृष्ण पर लगाये गये झूठे कलंक के कारण अति लज्जित हुआ और पश्चाताप करने लगा|
प्रायश्चित के रूप में उसने अपनी कन्या सत्यभामा का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया और वह मणि भी उन्हें दहेज में दे दी| किन्तु शरणागत वत्सल श्री कृष्ण ने उस मणि को स्वीकार न करके पुनः सत्राजित को वापिस कर दिया|