भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हमें ज्यादा मेहनत करने की आवश्यकता नहीं होती है| सभी देवताओं में से भगवान शिव ही एक ऐसे देवता हैं जो केवल जल अर्पित करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं और मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं| यदि आप भगवान शिव की प्राप्ति करना चाहते हैं तो इस विधि द्वारा भगवान शिव की पूजा करें और इस मंत्र का जप करें|
सर्वप्रथम हमें भगवान शिव की पूजा के लिए एक शिवलिंग का निर्माण करना होगा| शिवलिंग के निर्माण के लिए हमें यह सामग्री चाहिए – मिट्टी, भस्म, काली गाय का गोबर, दूध व घी, शहद, बिल्वपत्र, धतूरा, फल, स्वेतार्क केफुल, भांग, रुद्राक्ष की माला तथा लाल वस्त्र|
जिस स्थान पर आप शिवलिंग को स्थापित करना चाहते हैं, उस स्थान को गोबर से लिप लें| ऐसा करने से वह स्थान पवित्र हो जाएगा|
इसके बाद स्न्नान कर लें|
अब मिट्टी, गोबर और भस्म में गंगा जल मिलाकर 16 इंच लंबा और 5 इंच मोटाई के शिवलिंग का निर्माण करें|
भगवान शिव की यह पूजा पूर्णिमा के दिन शुरू करें तो बहुत उत्तम होगा|
पूजा के लिए ज्योतिष से मुहूर्त निकलवा लें|
पूजा में सबसे पहले श्री गणेश की पूजा करें और देवी पार्वती की पूजा करने के बाद अपने गुरु से आशीर्वाद लें|
अब आप उत्तर दिशा की ओर मुख कर के बैठें|
ध्यान रखें कि जिस आसान पर आप बैठें वह पीले रंग का हो|
आसन पर बैठ कर संकल्प लें कि आपको कितने जाप करने हैं| वैसे पूरा विधान पांच लाख बार जप करने से होता है|
इसके बाद गुरुमंत्र की चार माला जाप करें|
यह जाप करने के बाद सुपारी व कलावा लपेट कर श्री गणेश की स्थापना करें और पूजन सम्पन्न करें|
अपने दाहिनी और भैरव की स्थापना करें| यदि आपके पास भैरव यंत्र है तो बहुत शुभ है| यदि नहीं है तो चिंता की कोई बात नहीं है| आप सुपारी का भी उपयोग कर सकते हैं|
इसके पश्चात् सिंदूर और लाल फूल से भगवान भैरव की पूजा करें|
पूजा करने के बाद उन्हें गुड़ का भोग लगाएं|
भैरव बाबा के आगे सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें|
अपनी बायीं ओर घी का दीपक जलाएं और ध्यान रहे कि यह दोनों दीपक मंत्र जप तक प्रज्वलित रहें|
इस मंत्र का जप करते हुए भगवान शिव की पूजा करें-
ध्यायेन्नितय् महेशं रजतगिरिनिभं चारूचंद्रावतंसं ,
रत्नाकल्पोज्ज्व्लाङ्ग परशुमृगवराभीति हस्तं प्रसन्नम् !
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैव्याघ्रकृत्तिं वसानं,
विश्ववाध्यम विश्ववध्यम निखिल भयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं !
ॐ श्री उमामहेश्वराभ्यां नमः आवाहयामि, स्थापयामि पूजयामि !!
पंचामृत, गंगाजल,नैवेध्य और फूल से भगवान शिव की पूजा करें|
पंचमुखी रुद्राक्ष की छोटे दानों वाली माला भगवान शिव को पहना दें और दूसरी माला से जप करें|
साधना पूरी होने के बाद यह माला दिव्य हो जाएगी| इसके बाद एक पाठ रुद्राष्टक का करें और मंत्र जप की सिद्धि के लिए जप करें|
मंत्र जाप पूर्ण होने के बाद एक पाठ रुद्राष्टक का और दोबारा गुरुमंत्र का जप करें| पूरा दिन यही कर्म अपनाएं|
मंत्र साधना में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें, भूमि शयन करें|
यह एक अघोर साधना है| जिसके लिए किसी कुशल गुरु का होना अनिवार्य है|
यह साधना पूर्णिमा से शुरू होकर संकल्प खत्म होने तक करनी चाहिए| इस साधना कर्म बीच में टूटना नहीं चाहिए|