वैसे तो धन-सम्पत्ति, सोना-चाँदी कई मंदिरों और तीर्थ स्थानों में चढ़ाया जाता है लेकिन एक ऐसी झील है जहाँ बाबा कमरुनाग सोना-चाँदी चढ़ाने पर करते हैं लोगों की मन्नतें पूरी|
आइए जानते हैं कमरुनाग झील के बारे में:-
कमरुनाग जी का जिक्र महाभारत में हुआ था, जो धरती के सबसे शक्तिशाली योद्धा माने जाते थे| परन्तु भगवान श्री कृष्ण की लीला ने इनको पराजित कर दिया| महाभारत के समय कमरुनाग जी ने मन बनाया कि वे पहले युद्ध देखेंगे और जो सेना हारती हुई दिखेगी उसका साथ देंगे|
यह सोच कर श्री कृष्ण डर गए कि कौरवों को हारता देख अगर कमरुनाग उनकी तरफ हो गए तो पांडव जीत नहीं पाएंगे| फिर कृष्ण जी ने एक शर्त लगा कर इन्हें हरा दिया और बदले में इनका सिर मांग लिया। लेकिन कमरुनाग जी ने श्री कृष्ण से विनती की कि उन्हें महाभारत का युद्ध देखना है|
इसलिए श्री कृष्ण ने उनके कटे हुए सिर को हिमालय के एक पहाड़ पर रख दिया परन्तु इससे एक समस्या हुई कि जिस तरफ कमरुनाग का सिर घूमता, वह सेना जीतने लगती| इसलिए श्री कृष्ण ने उनके सिर को पत्थर से बांध कर पांडवों की तरफ घुमा दिया| इन्हें पानी की दिक्कत ना हो इसलिए भीम ने यहाँ अपनी हथेली को गाढ़ कर एक झील बना दी।
यह भी कहा जाता है कि इस झील में सोना चांदी चढ़ाने से मन्नत पुरी होती है। झील पैसों से भरी रहती है, ये सोना – चांदी कभी भी झील से निकाला नहीं जाता क्योंकि ये देवताओं का होता है। हर साल जून महीने में 14 और 15 जून को बाबा भक्तों को दर्शन देते हैं। झील घने जंगल में है और इन् दिनों के बाद यहाँ कोई भी पुजारी नहीं होता। यहाँ बर्फ भी पड़ जाती है।
यहाँ से कोई भी इस खज़ाने को चुरा नहीं सकता। क्योंकि माना जाता है कि कमरुनाग के पहरेदार इसकी रक्षा करते हैं। एक नाग की तरह दिखने बाला पेड़ इस पहाड के चारों ओर है। जिसके बारे मे कहते हैं कि ये नाग देवता अपने असली रुप में आ जाता है।
कमरुनाग यात्रा
पुरे साल में 14 और 15 जून को बाबा कमरुनाग पूरी दुनिया को दर्शन देते है। इसलिए लोगों का यहां जन सेलाब पहले ही उमड पड़ता है। क्योंकि बाबा घाटी के सबसे बड़े देवता हैं और हर मन्नत पुरी करते हैं। हिमाचल प्रदेश के मण्डी से लगभग 60 किलोमीटर दूर आता है रोहांडा, यहीं से पैदल यात्रा शुरु होती है। कठिन पहाड़ चड़कर घने जंगल से होकर गुजरना पड़ता है। इस तरह लगभग 8 किलोमीटर तक चढ़ाई चढ़नी पड़ती है|
मंदिर के पास ही एक झील है, जिसे कमरुनाग झील के नाम से जाना जाता है। यहां पर लगने वाले मेले में हर साल भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है और पुरानी मान्यताओं के अनुसार भक्त झील में सोने-चांदी के गहनें तथा पैसे डालते हैं। माना जाता है कि सदियों से चली आ रही इस प्रथा की वजह से इस झील में अरबों रूपए का खज़ाना दफ़न है|
कमरुनाग जी को बबरुभान जी के नाम से भी जाना जाता है। कमरुनाग में लोहड़ी पर भव्य पूजा का आयोजन भी किया जाता है।