हनुमान जी भगवान् राम के सबसे बड़े भक्त थे और उनकी निश्छल भक्ति के कई किस्से प्रचलित हैं उनमे से एक किस्सा यह भी है| बजरंग बलि ने आजीवन ब्रम्हचारी रहने का प्रण किया था और रामायण तथा राम चरित मानस में भी उल्लेखित है की उन्होंने विवाह नहीं किया|
परन्तु क्या आप जानते हैं की हनुमान जी एक पुत्र भी था और उसका नाम मकरध्वज था| जी हाँ आपने सही पढ़ा मकरध्वज हनुमान जी का ही पुत्र था परन्तु आपके मन में ये सवाल जरूर उठ रहा होगा की अगर हनुमान जी ने विवाह नहीं किया था तो उनका पुत्र कहा से आया|
दरअसल बात उस समय की है जब हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका जा रहे थे| हनुमान जी ने भगवान् राम का आशीर्वाद लिया और उनकी आज्ञानुसार उन्होंने लंका की ओर उड़ान भरी| जब वो रावण की लंका पहुंचे और वहां अशोक वाटिका में जाकर माता सीता से मुलाक़ात की पहले तो माता सीता को उनपर विश्वास नहीं हुआ उन्होंने इसे भी रावण की चाल मान लिया|
जब हनुमान जी ने माता सीता को श्री राम द्वारा दी गयी चूड़ामणि दी तब जाकर उन्हें ये यकीन हो पाया की हनुमान श्री राम के ही दूत हैं| जब हनुमान जी ने माता सीता का पता लगा लिया तो वानर होने की वजह से अशोक वाटिका में लगे फलों के पेड़ पर चढ़ गए और उत्पात मचाना शुरू कर दिया|
उन्होंने अशोक वाटिका के पेड़ों पर लगे फल खाने शुरू कर दिए उन्होंने कुछ खाया कुछ फेंका और पूरी अशोक वाटिका तहस नहस कर दी| आखिर में वहां के रखवालों ने उन्हें पकड़ कर रावण के सम्मुख प्रस्तुत किया तब उनकी करतूत सुनकर रावण के क्रोध की सीमा न रही| उसने क्रोध में आकर अपने सैनिकों को हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने का आदेश दे दिया रावण के सैनिकों ने उसकी आज्ञानुसार हनुमान जी की पूँछ में आग लगा दी|
आग लगते ही हनुमान जी ने सारी लंका अपनी पूँछ में लगी आग से जला कर राख कर दी आग की वजह से उन्होंने समुद्र में डुबकी लगाई| आग की गर्मी की वजह से हनुमान के शरीर से पसीने की बूंदे बह कर पानी में एक मछली के पेट में गयी| इससे वो गर्भवती हो गयी और कुछ समय बाद पाताल लोक के राजा अहिरावण के सैनिकों ने उस मछली को पकड़ लिया और उसका पेट चीरने लगे उन्हें मछली के पेट में एक वानर मिला| उस वानर बालक को लेकर वो अहिरावण के पास पहुंचे तो अहिरावण ने उसे पाताल लोक का रक्षक नियुक्त कर दिया|
जब रावण ने देखा की राम को कोई हरा नहीं पा रहा है तो उसने अपने भाई अहिरावण से सहायता मांगी| अहिरावण राम लक्ष्मण का अपहरण कर पाताल ले आया और उनकी बलि चढाने की तैयारी करने लगा| तब हनुमान उनकी तलाश में पाताल लोक पहुंचे पाताल के द्वार पर वानर रक्षक को देख कर उन्होंने उससे उसका परिचय पुछा तो उसने कहा की मैं हनुमान पुत्र मकरध्वज हूँ| तब उन्होंने बताया की मैं ही हनुमान हूँ और मैं ब्रम्हचारी हूँ तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो|
इसपर उसने अपनी उत्पत्ति की कथा सुनाई तब उन्होंने मकरध्वज को गले से लगा लिया और उसे रास्ते से हटने को कहा| मकरध्वज ने कहा की भले ही मैं आपका पुत्र हूँ परन्तु अभी मैं अपने स्वामी का रक्षक हूँ और मैं आपको अन्दर जाने नहीं दे सकता| तब उन दोनों में भीषण युद्ध हुआ और हनुमान जी ने मकरध्वज को अपनी पूँछ से बाँध लिया और पाताल में प्रवेश कर गए|