अक्सर बालपन से ही हमें मंदिर जाना सिखाया जाता है| वहां जाना एवं पूजा-आरती करने की सीख हमेशा से हमें दी जाती है| और हमारा ऐसे लोगों से भी मिलाप होता है जो मंदिर और मूर्ति-पूजा को अंधविश्वास का नाम देते हैं| आज हम इस लेख में मंदिर और मूर्ति पूजा के बारे में जानेंगे| आज हम मूर्ति पूजा के पीछे के विज्ञान के बारे में बात करेंगे|
सबसे पहला प्रश्न आता है कि मंदिर क्या है? मंदिर का अर्थ है मन के अंदर और इसका शाब्दिक अर्थ ‘घर’ या स्थान होता है| मंदिर एक ऐसी जगह है जहां सकारात्मक ऊर्जा का संचालन होता है और परमात्मा के मिलन के लिए पहली सीढ़ी ही सकारात्मक ऊर्जा-शक्ति जो हमें मंदिर में मिलती है|
जिस प्रकार छोटे होते हुए हमे किसी भी चीज़ का ज्ञान नहीं था परन्तु धीरे-धीरे हमारे अंदर जिज्ञासा होने लगती है और हम जानने की कोशिश करते हैं| कुछ ऐसा ही है यहां भी है- पहले हम मंदिर जाएंगे, फिर और जानने के लिए हम रामायण, गीता जैसे ग्रंथो को पढ़ते हैं| जिज्ञासा बढ़ने के बाद हम पुराण, उपनिषद, और फिर वेद-शास्त्र पढ़ते हैं, जिससे हमे ब्रह्मज्ञान की समझ आने लगती है|
जब हम इन सीढ़ियों को पार करते हैं तो हमें मूर्ति नहीं मूर्ति के रूप में ईश्वर के दर्शन होते हैं| हिन्दू धर्म में मान्यता है कि ईश्वर सर्वव्यापी है यानि हर जगह मौजूद है| यदि भगवान हर चीज़ में है तो मूर्ति में भी होगा, बस श्रद्धा-भाव से देखने की ज़रूरत है|
माना जाता है कि मंदिर एक शरीर के समान है और उस शरीर के हृदय में ईश्वर की मूर्ति राखी हुई है|
- मंदिर के गर्भग्रह को शरीर के चेहरे के समान माना गया है|
- गोपुरा शरीर के पैरों के समान है|
- शुकनासी को नाक माना गया है|
- अंतराला (निकलने की जगह) को गर्दन माना गया है|
- प्राकरा: (ऊँची दीवारें) इन्हें शरीर के हाथ माना गया है|
इस पूरे विज्ञानं के पीछे एक आध्यात्मिक अर्थ है कि भगवान को खिन ओर खोजने की ज़रूरत नहीं है बल्कि वे हमारे हृदय में बस्ते हैं| मंदिर में जाने से हमें सही दिशा में चलने का उपदेश मिलता है जिससे हम अच्छे कर्म कर के मोक्ष प्राप्त करते हैं|
जहाँ तक अन्धविश्वास की बात है तो ऋषियों ने कठिन तप कर इस ब्रह्मज्ञान को जाना है, उसके पश्चात उन्होंने ग्रंथ बनाये जिससे हमारा मार्ग-दर्शन हो पाए| मंदिरों और मूर्ति-पूजा के पीछे का विज्ञान यही कहता है कि मंदिर में जाने से सकारात्मक ऊर्जा-शक्ति हमारे शरीर और मस्तिष्क को स्वच्छ कर हमें सही दिशा दिखने की शक्ति देती है| इसे अन्धविश्वास का नाम देना गलत होगा|