हिन्दू धर्म में तीसरे लिंग की महत्वपूर्ण भूमिका

आज समाज आवाज़ उठा रहा है तीसरे लिंग यानि ट्रांसजेंडर समुदाय को बराबर अधिकार दिलाने के लिए परन्तु हिन्दू धर्म के इतिहास में ट्रांसजेंडर समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है| हिन्दू धर्म में ट्रांसजेंडर्स बहुचरा माता को पूजते है| हिन्दू धर्म में ट्रांसजेंडर्स को भाग्य का वाहक माना जाता था| कुछ सदियों तक तो यह मुख्य समारोह में आशीर्वाद देने भी आते रहे है| परन्तु आज कल के लोग इन्हे कम मान्यता देने लगे है चाहे वह समाज में रहना हो या काम करना|

हिन्दू धर्म जीने का तरीका बताता है| इसकी कई शाखाये एवं विचारधाराएं हैं जो कि एक ही सूत्र से जुडी है – वो है आत्मा| इसका एक ही लक्ष्य है- उस आत्मा को दिव्यता की ओर ले जाना| और आत्मा वह है जिसका कोई लिंग नहीं| हर व्यक्ति के अंदर दोनों प्रकृतियाँ होती है- पुरुष और स्त्री; और सभी अपना आत्मज्ञान का रास्ता अपनी प्रकृति के अनुसार ही तय करते है| अतः तीसरे लिंग को विभाजित करना हिन्दू धर्म के अंतर्गत नहीं आता|

यह तीसरे लिंग का होना कोई नई बात नहीं है| यह 5000 वर्ष पूर्व भी मौजूद थे, उस समय इन्हे ‘हिजड़ा’ कहा जाता था| हिजड़ों को भाग्य का वाहक माना गया था| यह धार्मिक सोच भगवान शिव के वक़्त से चली आ रही है| भगवान शिव के अंतर्गत दोनों प्रकृतियों का मेल था इसलिए उन्हें अर्धनारीश्वर कहा गया| अर्धनारीश्वर का तीसरा नेत्र दो प्रकृतियों का संतुलन बना कर रखता है|

इस तीसरे लिंग का वर्णण तंत्रों में किया गया है| महाभारत में कुरुक्षेत्र की लड़ाई में शिखंडी भी ट्रांसजेंडर थी| शिखंडी का जन्म स्त्री रूप में हुआ था जिसका नाम शिखण्डिनी था|

महाभारत के ही अंतर्गत अरावन योद्धा को पता था की उसकी मृत्यु युद्ध-क्षेत्र में होनी निश्चित है पर उसकी यह इच्छा थी की उसकी शादी युद्ध से पूर्व हो| तब श्री कृष्ण ने स्त्री रूप धारण कर अरावन से शादी की| युद्ध के दिन श्री कृष्ण, जो की उस समय ट्रांसजेंडर थे, विधवा हो गए| आज भी दक्षिण भारत में इस कथा को ट्रांसजेंडर पुनर अभिनय करते है, इस प्रकार वह भगवान कृष्ण की आराधना करते है|

प्राचीन काल में शनि देव का भक्तो पर प्रकोप था, उनके अत्याचारों से परेशान हो कर भक्तों ने हनुमान जी से गुहार लगाई| तब हुनमान जी से बचने के लिए शनि देव ने भी स्त्री रूप धारण किया और हुनमान जी के बाल-ब्रह्मचारी होने का लाभ उठाया| आख़िरकार हनमान जी ने शनि देव से युद्ध करने के लिए इंकार कर दिया|

कई सदियों तक हिजड़ों को सामान अधिकार दिया गया और उन्हें अंतर्ज्ञानि माना जाता था| परन्तु अब ट्रांसजेंडर्स को उनके अधिकारों से वंचित किया जाता है| इसी कारण से 2014 में इसका समाधान निकाला गया| भारतीय कोर्ट ने इन्हें तीसरे लिंग यानि ट्रांसजेंडर माना और इनके हित में बराबर के अधिकार दिए गए जैसे- स्वाथ्य, शिक्षा और काम| इन्हें भेदभाव से बचाने के लिए ज़रूरी आरक्षण भी दिया गया|

आज ट्रांसजेंडर्स अपने हक़ की लड़ाई खुद लड़ रहे है और समाज को उनके बराबर के अधिकारों की ओर जागरूक भी कर रहे है ताकि कोई भी भेदभाव से किसी भी ट्रांसजेंडर को सामना ना करना पड़े|

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