हिन्दू धर्म के ग्रंथो और उपग्रन्थों में कई अस्त्रों के बारे में उल्लेख किया गया है| देवी-देवताओं द्वारा शत्रुओं का अंत इन्हीं अस्त्रों द्वारा हुआ है| तो आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही अस्त्रों के बारे में:-
त्रिशूल
त्रिशूल का सीधे शब्दों में अर्थ है तीन शूल| यह भगवन शिव और माता शक्ति का अस्त्र है| यह अस्त्र सभी अस्त्रों से ऊपर माना गया है| भगवान शिव के आलावा कोई और इस अस्त्र काबू नहीं क्र सकता| इस अस्त्र के उपयोग से भगवन शिव ने कई असुरों का संहार किया है|
सुदर्शन चक्र
सुदर्शन चक्र भगवन विष्णु का अस्त्र है जिसे भगवन शिव ने उन्हें दिया था| यह हिन्दुधर्म का सबसे शक्तिशाली अस्त्र है जिसका निर्माण विश्वकर्मा ने किया है| अगर यह एक बार विष्णु जी के हाथ से निकल गया फिर ना भगवान शिव रोक सकते हैं ना ही ब्रह्मदेव| यह चक्र एक ऐसा अस्त्र है जो चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुंचकर वापस आ जाता है| यानि यह चक्र कभी नष्ट नहीं होता|
पाशुपतास्त्र
पाशुपतास्त्र भगवान शिव का ही अस्त्र है जो अर्जुन ने महाभारत युद्ध से पहले प्राप्त किया था| त्रिशूल के बाद यह सबसे शक्तिशाली शास्त्र है जिसके प्रहार से सारी सृष्टि नष्ट हो सकती है| अर्जुन ने यह अस्त्र का उपयोग इसी कारन नहीं किया था| केवल शिव जी के अस्त्र या विष्णु जी का सुदर्शन चक्र ही इसे निष्प्रभाव कर सकते हैं|
ब्रह्मदंड
इस अस्त्र को आज-कल के परमाणु बम के समान माना गया है| यह अस्त्र पौराणिक काल में बहुत कम उपयोग होता था क्योंकि इसके प्रभाव से जन-जीवन नष्ट हो सकता है| महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने इस अस्त्र का प्रयोग किया था जिसे कर्ण ने निष्प्रभाव कर दिया था| यह अस्त्र केवल ब्रह्मदेव से ही प्राप्त किया जा सकता था और यह एक दिन में केवल एक ही बार प्रयोग में लाया जा सकता था|
ब्रह्मशीर
ब्रह्मशीर अस्त्र ब्रह्मदण्ड का ही रूप है| यह ब्रह्मदण्ड से 4 गुणा अधिक शक्तिशाली है| यह आज के हाइड्रोजन बम के समान माना जाता है| इसका प्रभाव प्राण-घातक है| जिस जगह ब्रह्मशिर का उपयोग होता है उस जगह 12 साल तक ना तो कोई घास उगती है ना ही बारिश होती है|
नारायणास्त्र
यह अस्त्र भगवान विष्णु का अस्त्र है| इसका प्रहार सिर्फ एक ही तरह विफ़ल किया जा सकता है वो है खुद का पूरी तरह समर्पण| कुरुक्षेत्र की लड़ाई में अश्वथामा ने पांडवों पर इस शस्त्र का प्रयोग किया था| पांडवों ने फिर अपने शस्त्र छोड़ कर अपने घुटने तक दिए| इस अस्त्र के बारे में ये भी कहा जाता है कि इसका प्रयोग एक युद्ध में केवल एक ही बार किया जा सकता है|
भार्गवास्त्र
यह परशुराम का अस्त्र माना गया है जिसे कर्ण ने प्राप्त किया| यह इन्द्रास्त्र से भी ज़्यादा शक्तिशाली है| इसके प्रभाव से पूरी सृष्टि का नाश हो सकता है| महाभारत के युद्ध में जब कर्ण ने इस अस्त्र का प्रयोग किया तब अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र से इसे विफ़ल किया था|
देवास्त्र
देवास्त्र दिव्यास्त्र का दूसरा नाम है| इसके अंतर्गत अग्न्येस्त्र आता है जो अग्निदेव का है, वरुणास्त्र जोकि वर्षा के देव वरुण का है और वायव्यास्त्र जो वायुदेव का है|