आज भी कई ऐसे आविष्कार और खोज है जिनके असली जनक का नाम हम नहीं जानते बल्कि उनकी जगह इन आविष्कार और खोज का श्रेय कोई और ले गया| ऐसे ही गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज का नाम लेते ही जो सबसे पहला नाम जो दिमाग में आता है वो है सर आइसक न्यूटन| सभी लोगों ने अपने स्कूल के पाठ्यक्रम में गुरुत्वाकर्षण का अध्याय जरुर पढ़ा होगा जिसके अनुसार न्यूटन के सर पर सेब गिरने से उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के बारे में पता चला|
पर क्या आप जानते हैं की सर आइसक न्यूटन के जनम से सैकड़ो वर्ष पहले हमारे भारतवासी गुरुत्वाकर्षण के बारे में जानते थे| प्राचीन काल में सन 505-587 के समय में वराहमिहिर नामक महान खगोलविद और गणितज्ञ थे जिन्होंने सालों पहले गुरुत्वाकर्षण के बारे में बताया था परन्तु उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को न्यूटन की तरह कोई नाम नहीं दिया था| इसी वजह से सारा श्रेय सर आइसक न्यूटन के नाम हो गया|
इतना ही नहीं अगर हम वराहमिहिर को भी गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांतों का जनक न माने तो भी न्यूटन से पहले भारत के सन 598-670 के काल में महान ज्योतिषी ब्रह्मगुप्त थे| ब्रह्मगुप्त ज्योतिष शास्त्र के बहुत बड़े ज्ञाता तो थे ही साथ ही उन्हें गणित का भी बढ़िया ज्ञान था| ब्रह्मगुप्त की गिनती भारत के मशहूर ज्योतिषियों और गणितज्ञों में होती थी उन्होंने भी गुरुत्वाकर्षण के बारे में बताया था | ब्रह्मगुप्त के अनुसार धरती गोल है और चीज़ों को अपनी ओर आकर्षित करती है| अगर हम न्यूटन के सिद्धांतों को पढ़े तो उसमे भी यही लिखा है की धरती आकर में गोल है| और अगर कोई भी चीज़ अगर ऊपर की ओर भी फेंकी जाय या कही से भी गिर जाय तो वो आखिर में नीचे की ओर इसलिए आती है क्योंकि धरती चीज़ों को अपनी ओर आकर्षित करती है|
लेकिन उस समय लोगों ने उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया था क्योंकि सभी को गुरुत्वाकर्षण के बारे में महान खगोलविद वराहमिहिर पहले ही बता चुके थे| इससे ये पता चलता है की हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले ही गुरुत्वाकर्षण की खोज कर ली थी परन्तु उसका श्रेय सर आइसक न्यूटन को दिया जाता है और न्यूटन को ही गुरुत्वाकर्षण के नियम का आविष्कारक मानते हैं और अपने बच्चों को भी यही बताते है|
सोचिये कितना अजीब है न की हमें अपनी संस्कृति और इतिहास के बारे में इतना भी नहीं पता|
भारतवर्ष एक विश्व गुरु हैं और हर आविष्कार प्राचीन समय मैं ही हो गयें