गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है| इस पर्वत के आस पास की जगह ब्रजभूमि कहलाती है| यह भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली है। यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत अपनी चींटी अंगुली पर उठाया था।
सदियों से इस पर्वत की परिक्रमा के लिए पुरे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णव और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं। लोगों का मानना है कि परिक्रमा के द्वारा वे श्री कृष्ण की आराधना करते हैं| यह पूरी परिक्रमा 7 कोस अर्थात लगभग 21 किलोमीटर है।
माना जाता है कि 5000 साल पहले यह पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब इसकी ऊंचाई केवल 30 मीटर रह गयी है| इसके रोज़ मुट्ठी भर कम होने का कारण ऋषि पुलस्त्य का दिया हुआ शाप है| आइए जानते हैं इस प्रसंग की पूरी कहानी:-
कहा जाता है कि महर्षि पुलस्त्य भ्रमण करते वक़्त द्रोणांचल पर्वत पहुंचे| वहां गिरिराज पर्वत की सुंदरता को देख ऋषि बेहद प्रसन्न हुए। ऋषि ने पर्वत को उठा कर अपने यहां ले जाने का मन बनाया| जैसे ही पुलस्त्य ऋषि गोवर्धन पर्वत को उठाने लगे तभी गिरिराज जी ने कहा की आप मुझे जिस भी जगह पहली बार रखेंगे, मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा|
रास्ते में जब ऋषि ब्रजमंडल से गुजर रहे थे, तभी साधना के लिए उन्होंने पर्वत को रास्ते के किनारे रख दिया| इसके बाद ऋषिवर ने गोवर्धन को उठाने के कई प्रयास किए, पर अपने कहे अनुसार वे अपनी जगह से नहीं हिले। ऋषि पर्वत के हठ के कारण क्रोधित हो गए और गिरिराज पर्वत को शाप दिया की वे रोज़ मुट्ठी भर घटते रहेंगे| तभी से गोवर्धन पर्वत कम होते जा रहे हैं|
यह पर्वत दो राज्यों में बंटा हुआ है| इसका कुछ हिस्सा राजस्थान और बाकी का हिस्सा उत्तरप्रदेश के अंतर्गत आता है| पर्वत को चारों तरफ से गोवर्धन शहर और कुछ गांवों ने घेर रखा है। ध्यान से देखने पर पता चलता है कि पूरा शहर ही पर्वत पर बसा है।
वैष्णव समाज के लोग मानते हैं कि गिरिराज पर्वत के ऊपर गोविंद जी का मंदिर है। माना जाता है कि श्री कृष्ण आज भी यहां वास करते हैं। यहीं मंदिर में स्थित गुफा है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह राजस्थान स्थित श्रीनाथजी के मंदिर तक जाती है।
दूसरी मान्यता यह भी है कि जब रामसेतु का कार्य चल रहा था तब हनुमान जी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे, लेकिन तभी देववाणी हुई की सेतुबंध का कार्य पूरा हो गया है, यह सुनकर हनुमान जी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर रहे थे। यह देखकर पर्वत निराश हो गया और उसने हनुमान जी से कहा कि मैं न तो श्री राम के काम आया और न अपने स्थान पर रह सका।
पर्वत को इस तरह निराश देखकर हनुमान जी ने कहा कि द्वापर में भगवान श्री राम फिर से अवतार लेंगे। उस समय वह श्री कृष्ण के रूप में आपको अपनी उंगली पर उठा कर देवता के रूप में प्रतिष्ठित करेंगे।