एक समय की बात है देवतायों तथा दैत्यों में बहुत भयंकर युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में देवता दैत्यों पर भारी पड़ गए। देवता युद्ध जीतने में सफल हुए। यह युद्ध जीतने के पश्चात् देवतायों के मन में अहंकार पैदा हो गया। उनके मन में यह बात बैठ गयी कि अब उनसे श्रेष्ठ तथा ताकतवर कोई नही है। उन्हें लगने लगा कि अब उन्हें युद्ध में कोई नही हरा पायेगा।
जब माता दुर्गा ने देवतायों को अहंकार से ग्रस्त होते देखा तो उन्होंने उनका अहंकार खत्म करने की सोची। इस उद्देश्य से वह तेजपुंज के रूप में देवतायों के समक्ष प्रकट हुई। जब देवतायों ने इतना विराट तेजपुंज देखा तो वह घबरा गए। वे सभी तेजपुंज का रहस्य जानना चाहते थे।
तेजपुंज का रहस्य जानने के उद्देश्य से इंद्र ने वायुदेव को भेजा। इंद्र की आज्ञा का पालन करते हुए वायु देव तेजपुंज के समीप पहुंचे। तेजपुंज ने वायुदेव से उनका परिचय पूछा। अहंकार में चूर वायुदेव ने अपना परिचय देते हुए स्वयं को प्राणस्वरूप तथा अतिबलवान देव बताया। यह सुनकर तेजपुंज ने वायु देव के सामने एक तिनका रखकर कहा कि यदि तुम सचमुच इतने श्रेष्ठ हो तो इस तिनके को उड़ाकर दिखाओ। वायुदेव ने अपनी समस्त शक्ति लगा दी परन्तु वह उस तिनके को हिला भी न सके।
इसके बाद वह वापिस इंद्र के पास पहुंचे। यह सुनकर इंद्र आश्चर्यचकित रह गए। अब उन्होंने अग्निदेव को तेजपुंज के पास भेजा। अग्निदेव भी उस तिनके को जलाने में असमर्थ रहे। यह देख कर सभी देवतओं का अभिमान चूर चूर हो गया। इंद्र तथा सभी देवतायों ने अपनी गलती की माफ़ी मांगी तथा तेजपुंज की उपासना की।
उनकी उपासना से तेजपुंज से माता शक्ति का स्वरूप प्रकट हुआ। उन्होंने इंद्र तथा सभी देवतायों को उनकी गलती का अहसास दिलाया तथा उन्हें बताया कि तुमने मेरी कृपा से ही दैत्यों पर विजय प्राप्त की है। इस प्रकार झूठे अभिमान में आकर तुम अपना पुण्य नष्ट मत करो।
इस तरह देवी माँ ने सभी देवतायों का अहंकार तोड़ा।